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सिंधु घाटी सभ्यता | Important Facts about Indus Valley Civilization

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सिंधु घाटी सभ्यता का परिचय

  • सिंधु घाटी सभ्यता दुनिया की चार सबसे प्रारंभिक सभ्यताओं में से एक थी। अन्य सभ्यताएँ थी : टाइग्रिस और यूफ्रेट्स नदी के किनारे मेसोपोटामिया की सभ्यता, नील नदी के किनारे मिस्र की सभ्यता और ह्वांग हो के किनारे चीनी सभ्यता।
  • भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं।
  • यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई थी,जो कि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है।
  • 1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदडो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई।
  • भारतीय पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल जॉन मार्शल ने सन 1924 में सिंधु घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।
  • जॉन मार्शल द्वारा पहली बार “सिंधु घाटी सभ्यता” शब्द का प्रयोग किया गया था।
  • इस सभ्यता के लोग निश्चित रूप से अन्य सभ्यताओं विशेष रूप से मेसोपोटामिया सभ्यता के संपर्क में थे।

सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार

  • सभ्यता का केंद्र सिंध और पंजाब में था और वहीं से यह सभी दिशाओं में फैल गया।
  • इसका पश्चिमीतम बिंदु दक्षिण बलूचिस्तान में सुकतागेंडोर था जबकि पूर्वी बिंदु उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में आलमगीरपुर था।
  • उत्तर में इसने अफगानिस्तान का विस्तार किया जबकि दक्षिण में इसका विस्तार कम से कम महाराष्ट्र राज्य तक था।
  • यह सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया, दक्षिण एशिया और चीन की चार प्राचीन शहरी सभ्यताओं में सबसे बड़ी थी और लगभग 1.3 मिलियन वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई थी।
  • यह क्षेत्र आकार में त्रिभुजाकार थी।

सिंधु घाटी सभ्यता की उत्पत्ति और अवधि

  • सिंधु सभ्यता कांस्य युग की है।
  • यह उपमहाद्वीप में ताम्रपाषाण संस्कृतियों की तुलना में पुराना लेकिन अधिक विकसित है।
  • कुछ लोग सिंधु घाटी के लोगों को प्रोटो-द्रविड़ियन कहते हैं, जिन्हें परिपक्व हड़प्पा चरण में दक्षिण की ओर धकेल दिया गया होगा, जब आर्यों ने अपने उन्नत सैन्य कौशल के साथ 2000 ईसा पूर्व के आसपास अपना प्रवास शुरू किया था।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के तीन चरण हैं:
    • प्रारंभिक हड़प्पा चरण: 2900 – 2500 ई.पू
    • मध्य या परिपक्व हड़प्पा चरण : 2500 – 2000 ई.पू
    • उत्तर हड़प्पा चरण : 2000 – 1700 ई.पू

भौगोलिक कारक जिन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता के विकास में मदद की

सिंधु मुहरों में विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों के चित्र पाए जाते हैं जो केवल मामूली गीली स्थितियों में ही मौजूद हो सकते हैं। इसलिए, यह माना जाता है कि जलवायु की स्थिति काफी मध्यम थी। इसके अतिरिक्त, सिंधु के किनारे के विशाल मैदान बहुत उपजाऊ थे। बाढ़ ने हर साल इन मैदानों पर समृद्ध जलोढ़ मिट्टी जमा कर दी और भूमि को सिंचित कर दिया। इन भौगोलिक कारकों ने सिंधु बस्तियों की समृद्धि में बहुत मदद की।

सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य विशेषताएं

सिंधु घाटी  सभ्यता
  • पहली आम विशेषता मुहरों पर सिंधु लिपि है। इस लिपि को अभी तक समझा नहीं गया है।
  • दूसरी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता नगर नियोजन है। टाउन प्लानिंग की मुख्य विशेषताएं पकी और सूखी ईंटों का उपयोग, सुनियोजित सीधी सड़कें और जल निकासी की व्यवस्था थी।
  • मानक बाट और माप का उपयोग पूरी सभ्यता में पाया गया है।
  • वे पहियों पर मिट्टी के बर्तन बनाते थे।
  • वे मृतकों को दफनाते थे।
  • प्रारंभिक हड़प्पाई चरण ‘हाकरा चरण’ से संबंधित है, जिसे घग्गर- हाकरा नदी घाटी में चिह्नित किया गया है।
  • यह स्थापित किया गया है कि इस सभ्यता के मेसोपोटामिया सभ्यता के साथ संबंध थे। मेसोपोटामिया के विभिन्न शहरों में हड़प्पा की मुहरें मिली हैं जो इन संबंधों को साबित करती हैं।
  • मेसोपोटामिया के साहित्य में मेलुहा का वर्णन भारत की ओर संकेत करता है। मेसोपोटामिया के अभिलेखों में सिंधु क्षेत्र के लिए मेलुहा शब्द का उल्लेख मिलता है। सिंधु नदी का प्राचीन नाम मेलुहा था।
  • सभ्यता में संगीत का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है; हालांकि, एक नृत्य करती हुई लड़की की कांस्य मूर्ति की खोज सामाजिक मनोरंजन के बारे में कुछ अंतर्दृष्टि देती है।
  • हड़प्पाई लिपि का प्रथम उदाहरण लगभग 3000 ई.पू के समय का मिलता है।
  • इस चरण की विशेषताएं एक केंद्रीय इकाई का होना तथा बढते हुए नगरीय गुण थे।
  • व्यापार क्षेत्र विकसित हो चुका था और खेती के साक्ष्य भी मिले हैं। उस समय मटर, तिल, खजूर , रुई आदि की खेती होती थी।
  • कोटदीजी नामक स्थान परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता के चरण को प्रदर्शित करता है।
  • 2600 ई.पू. तक सिंधु घाटी सभ्यता अपनी परिपक्व अवस्था में प्रवेश कर चुकी थी।
  • परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता के आने तक प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता बड़े- बड़े नगरीय केंद्रों में परिवर्तित हो चुकी थी। जैसे- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो वर्तमान पाकिस्तान में तथा लोथल जो कि वर्तमान में भारत के गुजरात राज्य में स्थित है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के क्रमिक पतन का आरंभ 1800 ई.पू. से माना जाता है,1700 ई.पू. तक आते-आते हड़प्पा सभ्यता के कई शहर समाप्त हो चुके थे ।
  • परंतु प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के बाद की संस्कृतियों में भी इसके तत्व देखे जा सकते हैं।
  • कुछ पुरातात्त्विक आँकड़ों के अनुसार उत्तर हड़प्पा काल का अंतिम समय 1000 ई.पू. – 900 ई. पू. तक बताया गया है।

सिंधु घाटी सभ्यता की नगरीय योजना

  • हड़प्पाई सभ्यता अपनी नगरीय योजना प्रणाली के लिये जानी जाती है। हड़प्पा संस्कृति को ग्रिड प्रणाली की तर्ज पर नगर नियोजन किया गया था जिसके अंतर्गत सडकें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं ।
  • मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने- अपने दुर्ग थे जो नगर से कुछ ऊँचाई पर स्थित होते थे जिसमें अनुमानतः उच्च वर्ग के लोग निवास करते थे ।
  • दुर्ग से नीचे सामान्यतः ईंटों से निर्मित नगर होते थे, जिनमें सामान्य लोग निवास करते थे।
  • अन्न भंडारों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता के नगरों की प्रमुख विशेषता थी।
  • जली हुई ईंटों का प्रयोग हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता थी क्योंकि समकालीन मिस्र में मकानों के निर्माण के लिये शुष्क ईंटों का प्रयोग होता था।
  • हड़प्पा सभ्यता में जल निकासी प्रणाली बहुत प्रभावी थी। नालियाँ पत्थर की पटियाओं या ईंटों से ढकी होती थीं।
  • हर छोटे और बड़े घर के अंदर स्वंय का स्नानघर और आँगन होता था।
  • कालीबंगा के बहुत से घरों में कुएँ नही पाए जाते थे।
  • कुछ स्थान जैसे लोथल और धौलावीरा में संपूर्ण विन्यास मज़बूत और नगर दीवारों द्वारा भागों में विभाजित थे।

कृषि (सिंधु घाटी सभ्यता)

  • जली हुई ईंटों का व्यापक उपयोग, जिसके लिए लकड़ी की बहुत आवश्यकता होती थी, और मुहरों पर वनस्पतियों और जीवों का बार-बार चित्रण अच्छी वर्षा का संकेत देता है।
  • हड़प्पाई गाँव मुख्यतः प्लावन मैदानों के पास स्थित थे,जो पर्याप्त मात्रा में अनाज का उत्पादन करते थे।
  • गेहूँ और जौ मुख्य खाद्य-फसलें थीं, इसके अलावा, रई, मटर, तिल, सरसों, चावल (लोथल में), खजूर, केला आदि का भी उत्पादन होता था। गुजरात के कुछ स्थानों से बाजरा उत्पादन के संकेत भी मिले हैं।
  • चावल की खेती के प्रमाण लोथल और रंगपुर से ही मिलते हैं।
  • सिंधु सभ्यता के मनुष्यों ने सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारंभ की थी। क्योंकि इस क्षेत्र में सबसे पहले कपास का उत्पादन होता था, यूनानियों ने इसे ‘सिंडोन’ कहा, जो सिंध से निकला है।
  • वास्तविक कृषि परंपराओं को पुनर्निर्मित करना कठिन होता है क्योंकि कृषि की प्रधानता का मापन इसके अनाज उत्पादन क्षमता के आधार पर किया जाता है।
  • मुहरों और टेराकोटा की मूर्तियों पर सांड के चित्र मिले हैं तथा पुरातात्त्विक खुदाई से बैलों से जुते हुए खेत के साक्ष्य मिले हैं।
  • हड़प्पा सभ्यता के अधिकतम स्थान अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में मिले हैं,जहाँ खेती के लिये सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • नहरों के अवशेष हड़प्पाई स्थल शोर्तुगई अफगानिस्तान में पाए गए हैं ,लेकिन पंजाब और सिंध में नहीं।
  • हड़प्पाई लोग कृषि के साथ -साथ बड़े पैमाने पर पशुपालन भी करते थे ।
  • सुरकोटदा में घोड़े के अवशेष और रोपड़ में कब्र में पुरुषों के साथ कुत्तों के अवशेष मिले हैं। घोड़े और ऊंट के संबंध में साक्ष्य अनिर्णायक है। हड़प्पाई संस्कृति किसी भी स्थिति में अश्व केंद्रित नहीं थी।

सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था

  • अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि प्रधान थी लेकिन व्यापार और वाणिज्य द्वारा अत्यधिक समर्थित थी।
  • अनगिनत संख्या में मिली मुहरें ,एकसमान लिपि, वजन और मापन की विधियों से सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार के महत्त्व के बारे में पता चलता है।
  • आंतरिक और बाहरी दोनों तरह का व्यापार होता था। व्यापार भूमि और समुद्री मार्ग दोनों द्वारा किया जाता था।
  • धातु मुद्रा का प्रयोग नहीं होता था। व्यापार की वस्तु विनिमय प्रणाली मौजूद थी।
  • मुहरें व्यापारिक महत्व की प्रतीत होती हैं।
  • ठोस पहिये वाले जहाज और गाड़ियाँ परिवहन के मुख्य साधन थे।
  • सिंधु लोगों के पास उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं के लिए आवश्यक कच्चा माल नहीं था।
  • हाथीदांत, कारेलियन मोती, खोल के सामान, सूती कपड़े, और संभवतः खाद्यान्न और मसालों जैसे तैयार माल के बदले में, उन्होंने पड़ोसी क्षेत्रों से धातु की खरीद की।
  • हड़प्पाई लोग पत्थर ,धातुओं, सीप या शंख का व्यापर करते थे।
  • अरब सागर के तट पर उनके पास कुशल नौवहन प्रणाली भी मौजूद थी।
  • उन्होंने उत्तरी अफगानिस्तान में अपनी व्यापारिक बस्तियाँ स्थापित की थीं जहाँ से प्रमाणिक रूप से मध्य एशिया से सुगम व्यापार होता था।
  • दजला -फरात नदियों की भूमि वाले क्षेत्र से हड़प्पा वासियों के वाणिज्यिक संबंध थे।
  • हड़प्पाई प्राचीन ‘लैपिस लाजुली’ मार्ग से व्यापार करते थे जो संभवतः उच्च लोगों की सामाजिक पृष्ठभूमि से संबधित था ।

सिंधु घाटी सभ्यता की शिल्पकला

  • हड़प्पाई कांस्य की वस्तुएँ निर्मित करने की विधि ,उसके उपयोग से भली भाँति परिचित थे।
  • तांबा राजस्थान की खेतड़ी खान से प्राप्त किया जाता था और टिन अनुमानतः अफगानिस्तान से लाया जाता था ।
  • बुनाई उद्योग में प्रयोग किये जाने वाले ठप्पे बहुत सी वस्तुओं पर पाए गए हैं।
  • बड़ी -बड़ी ईंट निर्मित संरचनाओं से राजगीरी जैसे महत्त्वपूर्ण शिल्प के साथ साथ राजमिस्त्री वर्ग के अस्तित्व का पता चलता है।
  • हड़प्पाई नाव बनाने की विधि,मनका बनाने की विधि,मुहरें बनाने की विधि से भली- भाँति परिचित थे। टेराकोटा की मूर्तियों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता की महत्त्वपूर्ण शिल्प विशेषता थी।
  • जौहरी वर्ग सोने ,चांदी और कीमती पत्थरों से आभूषणों का निर्माण करते थे ।
  • मिट्टी के बर्तन बनाने की विधि पूर्णतः प्रचलन में थी,हड़प्पा वासियों की स्वयं की विशेष बर्तन बनाने की विधियाँ थीं, हड़प्पाई लोग चमकदार बर्तनों का निर्माण करते थे ।

संस्थाएँ

  • सिंधु घाटी सभ्यता से बहुत कम मात्रा में लिखित साक्ष्य मिले हैं ,जिन्हें अभी तक पुरातत्त्वविदों तथा शोधार्थियों द्वारा पढ़ा नहीं जा सका है।
  • एक परिणाम के अनुसार, सिंधु घाटी सभ्यता में राज्य और संस्थाओं की प्रकृति समझना काफी कठिनाई का कार्य है ।
  • हड़प्पाई स्थलों पर किसी मंदिर के प्रमाण नहीं मिले हैं। अतः हड़प्पा सभ्यता में पुजारियों के प्रुभुत्व या विद्यमानता को नकारा जा सकता है।
  • हड़प्पा सभ्यता अनुमानतः व्यापारी वर्ग द्वारा शासित थी।
  • अगर हम हड़प्पा सभ्यता में शक्तियों के केंद्रण की बात करें तो पुरातत्त्वीय अभिलेखों द्वारा कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती है।
  • कुछ पुरातत्त्वविदों की राय में हड़प्पा सभ्यता में कोई शासक वर्ग नहीं था तथा समाज के हर व्यक्ति को समान दर्जा प्राप्त था ।
  • कुछ पुरातत्त्वविदों की राय में हड़प्पा सभ्यता में कई शासक वर्ग मौजूद थे ,जो विभिन्न हड़प्पाई शहरों में शासन करते थे ।

सिंधु घाटी सभ्यता के धर्म

  • हड़प्पा के लोगों की धार्मिक मान्यताओं के बारे में हमें कोई विशेष जानकारी नहीं है। हालांकि, पुरातात्विक खोजों के आधार पर हम कुछ निष्कर्षों पर आ सकते हैं।
  • किसी भी हड़प्पा स्थल से कोई मंदिर नहीं मिला है।
  • टेराकोटा की लघुमूर्तियों पर एक महिला का चित्र पाया गया है, इनमें से एक लघुमूर्ति में महिला के गर्भ से उगते हुए पौधे को दर्शाया गया है।
  • हड़प्पाई पृथ्वी को उर्वरता की देवी मानते थे और पृथ्वी की पूजा उसी तरह करते थे, जिस प्रकार मिस्र के लोग नील नदी की पूजा देवी के रूप में करते थे।
  • देवी माँ प्रमुख थी यह दर्शाता है कि समाज मुख्य रूप से मातृसत्तात्मक था।
  • पुरुष देवता के रूप में मुहरों पर तीन शृंगी चित्र पाए गए हैं जो कि योगी की मुद्रा में बैठे हुए हैं ।
  • देवता के एक तरफ हाथी, एक तरफ बाघ, एक तरफ गैंडा तथा उनके सिंहासन के पीछे भैंसा का चित्र बनाया गया है। उनके पैरों के पास दो हिरनों के चित्र है। चित्रित भगवान की मूर्ति को पशुपतिनाथ महादेव की संज्ञा दी गई है।
  • अनेक पत्थरों पर लिंग तथा स्त्री जनन अंगों के चित्र पाए गए हैं जो इस बात का संकेत देते हैं कि लिंग पूजा या लिंग पूजा चल रही थी।
  • सिंधु घाटी सभ्यता के लोग वृक्षों तथा पशुओं की पूजा किया करते थे। पीपल के पेड़ को कई मुहरों पर चित्रित किया गया है जिससे यह आभास होता है कि यह एक पवित्र वृक्ष हो सकता है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे महत्त्वपूर्ण पशु एक सींग वाला गैंडा था तथा दूसरा महत्त्वपूर्ण पशु कूबड़ वाला सांड था।
  • अत्यधिक मात्रा में ताबीज भी प्राप्त किये गए हैं।
  • स्वास्तिक सौभाग्य का प्रतीक था। कुछ मुहरों पर मगरमच्छों का चित्रण नदी देवता का प्रतीक हो सकता है।
  • मोहनजोदड़ो शहर में विस्तृत स्नान व्यवस्था से पता चलता है कि स्नान द्वारा धार्मिक शुद्धि सिंधु घाटी के लोगों की एक विशेषता थी।

सिंधु घाटी सभ्यता का पतन

  • हड़प्पा संस्कृति लगभग एक हजार साल तक चली और लगभग 1800 ईसा पूर्व तक ध्वस्त हो गई। इस सभ्यता के पतन का सही कारण ज्ञात नहीं है।
  • एक सिद्धांत यह कहता है कि इंडो -यूरोपियन जनजातियों जैसे- आर्यों ने सिंधु घाटी सभ्यता पर आक्रमण कर दिया तथा उसे हरा दिया ।
  • सिंधु घटी सभ्यता के बाद की संस्कृतियों में ऐसे कई तत्त्व पाए गए जिनसे यह सिद्ध होता है कि यह सभ्यता आक्रमण के कारण एकदम विलुप्त नहीं हुई थी ।
  • दूसरी तरफ से बहुत से पुरातत्त्वविद सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण प्रकृति जन्य मानते हैं।
  • प्राकृतिक कारण भूगर्भीय और जलवायु संबंधी हो सकते हैं।
  • यह भी कहा जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के क्षेत्र में अत्यधिक विवर्तिनिकी विक्षोभों की उत्पत्ति हुई जिसके कारण अत्यधिक मात्रा में भूकंपों की उत्पत्ति हुई।
  • एक प्राकृतिक कारण वर्षण प्रतिमान का बदलाव भी हो सकता है।
  • एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि नदियों द्वारा अपना मार्ग बदलने के कारण खाद्य उत्पादन क्षेत्रों में बाढ़आ गई हो ।
  • इन प्राकृतिक आपदाओं को सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का मंद गति से हुआ, परंतु निश्चित कारण माना गया है।

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