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इसराइल-फ़लस्तीन विवाद

जानिए इसराइल-फ़लस्तीन विवाद के बारे में

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इसराइल-फ़लस्तीन विवाद का इतिहास

इसराइल-फ़लस्तीन विवाद
  • यहूदी धर्म : दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक धर्म है यहूदी धर्म। इस धर्म का इतिहास करीब 3,000 साल पुराना माना जाता है। इस धर्म की शुरुआत होती है येरूशलम से। वही येरूशलम जो यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म की पवित्र जगहों में से एक है। इस धर्म की शुरुआत पैगंबर अब्राहम ने की थी। अब्राहम को ईसाई और मुस्लिम भी ईश्वर का दूत कहते हैं। अब्राहम के बेटे का नाम आईजैक और एक पोते का नाम याकूब (जैकब) था। याकूब का दूसरा नाम इसराइल था। याकूब के 12 बेटे और एक बेटी थी। इन 12 बेटों ने 12 यहूदी कबीले बनाए। याकूब ने इन यहूदियों को इकट्ठा कर इसराइल नाम का एक राज्य बनाया। याकूब के एक बेटे का नाम यहूदा था। उनके वंशजों को यहूदी कहा गया। इनकी भाषा हिब्रू थी और धर्मग्रंथ तनख है। ये लोग येरूशलम और यूदा के इलाके में रहते थे। करीब 2200 साल पहले पहला यहूदी राज्य अस्तित्व में आया। जिसमें साउल, इशबाल, डेविड और सोलोमन जैसे प्रसिद्ध राजा हुए। 931 ईसा पूर्व में सोलोमन के बाद इस राज्य का धीरे-धीरे पतन होने लगा। संयुक्त इसराइल दो हिस्सों में बंटकर इसराइल और यूदा के बीच में बंट गया। 700 ईसा पूर्व में असीरियाई साम्राज्य ने येरूशलम पर हमला किया। इस हमले के बाद यहूदियों के 10 कबीले तितर-बितर हो गए। 
  • 72 ईसा पूर्व में रोमन साम्राज्य ने इस इलाके पर हमला करके उसपर कब्जा कर लिया था। इसके बाद सारे यहूदी दुनियाभर में इधर-उधर जाकर बस गए। इस हमले में किंग डेविड के मंदिर को भी तोड़ दिया गया। इस मंदिर की एक दीवार बची थी जो आज भी यहूदियों के लिए पवित्र तीर्थ मानी जाती है। इसे वेस्टर्न वॉल भी कहा जाता है। इस घटना को एक्जोडस कहा जाता है। कुछ स्कॉलर इस घटना को मिथ्या भी कहते हैं। लेकिन यह घटना यहूदियों के लिए बेहद अहम है। वेस्टर्न वॉल के साथ मुस्लिमों की पवित्र अल अक्सा मस्जिद और हरम अस शरीफ के साथ ईसाइयों की पवित्र जगह जहां ईसा मसीह को सूली पर टांगा गया था, मौजूद है।
  • यहूदियों को लेकर पूरी दुनिया में फैला था एक वहम
    • इसी दौरान एक और शब्द एंटी सेमिटिज्म प्रचलन में आया. इस शब्द का मतलब था हिब्रू भाषा बोलने वाले लोग यानी यहूदियों के प्रति दुर्भावना. पूरी दुनिया में दुनिया में यहूदियों को लेकर एक वहम फैला कि ये दुनिया की सबसे चालाक कौम है. ये किसी को भी धोखा दे सकते हैं.
  • सार्वजनिक करनी होती थी यहूदियों को अपनी पहचान
    • ऐसे में ‘एंटी सेमिटिज्म’ की वजह से कई देशों में यहूदियों को अपनी पहचान सार्वजनिक करनी होती थी. कई यूरोपीय देशों की सेनाओं में लड़ने वाले यहूदियों को अपनी वर्दी पर एक सितारा लगाना पड़ता था जिसे ‘डेविड स्टार’ कहा जाता था. इस सितारे से यहूदियों की पहचान की जाती थी. पहचान छिपाने या गलत बताने पर यहूदियों के लिए सजा का भी प्रावधान था.
  • थियोडोर हर्जल ने रखी थी इजरायल के गठन की सैद्धांतिक नींव
    • थियोडोर हर्जल नाम के वियना में रहने वाले एक यहूदी ने वर्तमान इजरायल की स्थापना की सैद्धांतिक तौर पर नींव रखी थी. 1860 में जन्मे हर्जल वियना में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करते थे लेकिन एंटी सेमिटिज्म की वजह से उन्हें वियना छोड़ना पड़ा इसके बाद वो फ्रांस आ गए और वहां उन्होंने बतौर पत्रकार काम करने लिए.
    • साल 1890 में फ्रांस और रूस के बीच हुए एक युद्ध में फ्रांस को हार का सामना करना पड़ा. फ्रांस के हार के कारणों की जब समीक्षा की गई तो उसकी जिम्मेदारी एक यहूदी अधिकारी एल्फर्ड ड्रेफस के ऊपर डाल दी गई. बतौर पत्रकार हर्जल ने इस खबर पर कवर स्टोरी की. इस घटना के बाद उन्होंने निर्णय किया कि वो पूरी दुनिया में फैले यहूदियों को इकट्ठा करेंगे और उनके लिए एक नए देश या राज्य की स्थापना करेंगे.
  • 1897 में जायनिस्ट कांग्रेस की हुई थी स्थापना
    • साल 1897 में उन्होंने स्विटजरलैंड में वर्ल्ड जायनिस्ट कांग्रेस की स्थापना किया. जायनिस्ट का हिब्रू में अर्थ स्वर्ग होता है. इस संस्था को पूरी दुनिया के यहूदी चंदा देने लगे और संस्था के बैनर तले इकट्ठा भी होने लगे. हर साल संस्था के वैश्विक सम्मेलन का आयोजन किया जाता था. लेकिन 1904 में संस्था के संस्थापक हर्जल का दिल की बीमारी की वजह से निधन हो गया. उनकी मौत का यहूदियों के अलग देश के आंदोलन पर कोई असर नहीं पड़ा क्योंकि जायनिस्ट कांग्रेस की पकड़ यहूदियों के बीच तबतक बेहद मजबूत हो चुकी थी.
  • ब्रिटेन और यहूदियों के बीच हुआ बालफोर समझौता
    • उस दौर में तुर्की और उसके आसपास के इलाकों में ऑटोमन साम्राज्य का परचम लहराता था. लेकिन 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध की शुरुआत हुई और विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों और ब्रिटेन के बीच बालफोर समझौता हुआ. दोनों के बीच हुए इस समझौते के मुताबिक यदि युद्ध में ब्रिटेन ऑटोमन साम्राज्य को हरा देता है तो फिलिस्तीन के इलाके में यहूदियों के लिए एक स्वतंत्र देश की स्थापना की जाएगी.
  • ब्रिटेन ने नहीं पूरा किया अपना वादा और शुरू हुआ आधुनिक संघर्ष
    • इस समझौते के बाद जायनिस्ट कांग्रेस को लगा कि अगर युद्ध के बाद ब्रिटेन अपना वादा पूरा करता है तो नए देश की स्थापना के लिए उस इलाके में बड़ी आबादी की मौजूदगी जरूरी है. ऐसे में यहूदियों ने अपने देशों को छोड़कर धीरे-धीरे फिलिस्तीन के इलाके में बसना शुरू किया.
    • लेकिन युद्ध में जीत के बाद ब्रिटेन ने देश बनाने का वादा पूरा नहीं किया लेकिन यहूदियों को इस इलाके में बसने में मदद की और उन्हें यहा बसाने के लिए तमाम तरह की सुविधाएं और संसाधन उपलब्ध कराए. इसके साथ ही फिलिस्तीन और यहूदियों के बीच आधुनिक संघर्ष की शुरुआत हुई.
  • हिटलर के खौफ की वजह से फिलिस्तीन पहुंचे यहूदी
    • प्रथम विश्व युद्ध के बाद साल 1920 और 1945 के बीच यूरोप में बढ़ते उत्पीड़न और हिटलर की नाजियों के हाथों नरसंहार से बचने के लिए लाखों की संख्या में यहूदी फिलिस्तीन पहुंचने लगे. इलाके में यहूदियों की बढ़ती आबादी को देखकर फिलिस्तीनियों को अपने भविष्य की चिंता हुई और इसके बाद फिलिस्तीनियों और यहूदियों के बीच टकराव शुरू हो गया.
    • 1933 में जर्मनी का सत्ता पर काबिज होने के बाद हिटलर ने यहूदियों का पूरी दुनिया से खात्मा करने की योजना पर अमल किया. 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के आगाज के बाद हिटलर ने बड़े पैमाने पर यहूदियों को मौत के घाट उतरा. हिटलर ने एक योजना के तहत विश्व युद्ध के 6 साल के दौरान 60 लाख से ज्यादा यहूदियों को मौत के घाट उतारा था. जिसमें 15 लाख बच्चे शामिल थे. हिटलर ने पूरी दुनिया की एक तिहाई यहूदी आबादी को खत्म कर दिया था.
  • संयुक्त राष्ट्र ने कर दिया इलाके का बटवारा
    • दूसरे विश्व युद्ध के बाद फिलिस्तीन पर शासन कर रहे ब्रिटन के लिए दोनों गुटों के बीच संघर्ष को संभाल पाना मुश्किल हो गया. ऐसे में वो इस मामले को नवगठित संयुक्त राष्ट्र में ले गया. संयुक्त राष्ट्र ने 29 नवंबर, 1947 को द्विराष्ट सिद्धांत के तहत अपना फैसला सुनाया और इस इलाके को यहूदी और अरब देशों में बांट दिया. यरुशलम को अंतरराष्ट्रीय शहर घोषित किया गया. यहूदियों ने इस फैसले को तुरंत मान्यता दे दी और अरब देशों ने इसे स्वीकार नहीं किया. इसके बाद 1948 में अंग्रेज इस इलाके को छोड़कर चले गए और 14 मई, 1948 को यहूदियों का देश इजरायल वजूद में आया.

इसराइल का निर्माण और ‘तबाही’

इसराइल में 14 मई को राष्ट्रीय अवकाश होता है। 70 साल पहले इसी दिन एक नए राष्ट्र की स्थापना हुई थी। लेकिन फ़लस्तीनियों की त्रासदी की शुरूआत भी उसी दिन से हो गई थी। फ़लस्तीनी लोग इस घटना को 14 मई के बजाय 15 मई को याद करते हैं। वो इसे साल का सबसे दुखद दिन मानते हैं। 15 मई को वो ‘नकबा’ का नाम देते हैं। नकबा यानि विनाश के दिन की शुरुआत 1998 में फ़लस्तीनी क्षेत्र के तब के राष्ट्रपति यासिर अराफ़ात ने की थी।

  • 1948 में समस्या सुलझाने में असफल होकर ब्रिटिश शासक चले गए और यहूदी नेताओं ने इसराइल राष्ट्र के निर्माण की घोषणा कर दी।
  • कई फ़लस्तीनियों ने इस पर आपत्ति जताई और युद्ध शुरू हो गया।
  • 14 मई 1948 के अगले दिन साढ़े सात लाख फ़लस्तीनी, इसराइली सेना के बढ़ते क़दमों की वजह से घरबार छोड़ कर भागे या भगाए गए थे। कइयों ने ख़ाली हाथ ही अपना घरबार छोड़ दिया था। कुछ घरों पर ताला लगाकर भाग निकले। यही चाबियां बाद में इस दिन के प्रतीक के रूप में सहेज कर रखी गईं। इसको उन्होंने अल-नकबा या ‘तबाही’ कहा।
  • बाद के सालों में जब संघर्ष विराम लागू हुआ, तब तक इसराइल अधिकतर क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले चुका था।
  • जॉर्डन के क़ब्ज़े वाली ज़मीन को वेस्ट बैंक और मिस्र के क़ब्ज़े वाली जगह को गज़ा के नाम से जाना गया।
  • वहीं, यरुशलम को पश्चिम में इसराइली सुरक्षाबलों और पूर्व को जॉर्डन के सुरक्षाबलों के बीच बाँट दिया गया।
  • इसको लेकर कोई शांति समझौता नहीं था तो आने वाले दशकों में इस पर और लड़ाइयाँ लड़ी गईं।

अरब देशों ने कर दिया इजरायल पर हमला
इजरायल के खुद के राष्ट्र घोषित करते हुए सीरिया, लीबिया और इराक ने इसपर हमला बोल दिया. इसी के साथ ही अरब-इजरायल युद्ध की शुरुआत हुई. सफदी अरब ने अपनी सेना युद्ध में भेजी और मिस्र की सहायता से इजरायल पर हमला किया. यमन भी युद्ध में शामिल हुआ. एक साल तक लड़ाई के चलने के बाद युद्ध विराम की घोषणा हुई. जॉर्डन और इजरायल के बीच सीमा का निर्धारण हुआ. जिसे ग्रीन लाइन नाम दिया गया. इस युद्ध के दौरान तकरीबन 70 हजार फिलिस्तीनी विस्थापित हुए. युद्ध के बाद 11 मई 1949 को इजरायल को संयुक्त राष्ट्र ने अपनी मान्यता दे दी.

इसराइल का रवैया

  • लेकिन इसराइल इस कहानी को नहीं मानता। उसका दावा है कि फ़लस्तीनी लोग उनकी वजह से नहीं बल्कि मिस्र, जॉर्डन, सीरिया और इराक़ के हमले की वजह से भागे थे क्योंकि इन देशों की सेनाएं यहूदी जीत को रोकना चाहती थीं।
  • जब ये संघर्ष ख़त्म हुआ तो इसराइल ने फ़लस्तीनियों को वापस नहीं लौटने दिया।
  • उसका तर्क था कि उन मकानों के मालिक ग़ैर हाज़िर हैं इसलिए उन्हें ज़ब्त करना वाजिब है।
  • इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने पड़ोसी देशों की सीमाओं पर कई रिफ़्यूजी कैंप खोल दिए। इनमें से कुछ पूर्वी यरूशलम में भी थे, लेकिन तभी से दोनों पक्षों के बीच तनाव और संघर्ष जारी है।
  • फ़लस्तीनियों के लिए नकबा उसी दिन से शुरू हो गया था। लेकिन ये शब्द भी दोनों पक्षों के बीच संघर्ष का कारण रहा है। इसराइल ऐसे किसी ‘विनाश के दिन’ से इनकार करता है और वो इस शब्द को इसराइल के अस्तित्व को नकारने वाला बताता है।
  • बहरहाल हर साल 15 मई को फ़लस्तीनी इसराइल के साथ हुए संघर्षों को याद करते हैं और उनकी राय में नकबा 15 मई 1948 को ही ख़त्म नहीं हुआ था। वो तब से लेकर अब तक इसराइल के साथ तनावग्रस्त संबंधों को नकबा का हिस्सा मानते हैं।

अन्य झड़पें

इसराइल के गठन और लाखों फ़लस्तीनियों के पलायन के बाद, फ़लस्तीनी राष्ट्रीय आंदोलन वेस्ट बैंक और गज़ा में एकजुट होने लगा।

  • साल 1956 में स्वेज़ नहर पर नियंत्रण को लेकर मिस्र और इसराइल एक बार फिर आमने-सामने थे। हालांकि ये मसला मैदाने जंग में नहीं बल्कि इसराइल, फ़्रांस और इंग्लैंड पर अंतरराष्ट्रीय दवाब से सुलझा।
  • साल 1967 में हुए छह दिन के युद्ध के दौरान यहूदियों और अरबों के बीच फिर संघर्ष छिड़ गया और उस साल पांच जून से लेकर 10 जून तक जो कुछ हुआ उसका असर कई स्तरों तक आज भी महसूस किया जा सकता है।
  • इस ऐतिहासिक युद्ध में इसराइल की जीत ने उसे बेहद मज़बूत स्थिति में पहुंचा दिया। इसराइल ने मिस्र से गज़ा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप, जॉर्डन से पूर्वी यरूशलम समेत वेस्ट बैंक और सीरिया से गोलन हाइट्स को अपने कब्ज़े में ले लिया। एक बार फिर पांच लाख फ़लस्तीनी घरबार छोड़कर भागे।
  • इसके बाद 1973 में योम किप्पुर युद्ध हुआ। इस जंग में मिस्र और सीरिया इसराइल से लोहा ले रहे थे। मिस्र ने सिनाई प्रायद्वीप को तो छुड़ा लिया, लेकिन गज़ा पट्टी को वापस हासिल नहीं कर पाया।
  • छह साल बाद मिस्र इसराइल के साथ शांति समझौता करने वाला पहला अरब देश बना। इसी राह पर बाद में जॉर्डन भी चला।
  • साल 1967 में हुई जंग से कुछ दिन पहले यासिर अराफ़ात ने लिबरेशन ऑफ़ पेलेस्टाइन ओर्गेनाइज़ेशन यानि पीएलओ का गठन किया। इस नए गुट में कई पुराने संगठन शामिल हुए।
  • यासिर अराफ़ात ने पीएलओ का गठन किया था। पीएलओ ने पहले जॉर्डन और फिर लेबनान से इसराइल के विरुद्ध ऑपरेशन शुरू कर दिए।
  • साल 1994 आते-आते गज़ा पट्टी एक बार फिर फ़लस्तीनियों के कब्ज़े में आ गई। लेकिन यहां 2008, 2009, 2012 और 2014 में कई ख़ूनी संघर्ष हुए।

अभी क्या हो रहा है?

  • सऊदी अरब और तुर्की की दुश्मनी ऑटोमन साम्राज्य से ही है जबकि दोनों सुन्नी मुस्लिम बहुल देश हैं। कहा जाता है कि दोनों के बीच मुस्लिम वर्ल्ड के नेतृत्व की होड़ भी है।
  • सऊदी अरब के पास मक्का और मदीना है तो तुर्की के पास विशाल ऑटोमन साम्राज्य की विरासत। इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच जारी टकराव को लेकर सऊदी अरब और तुर्की खुलकर फ़लस्तीनियों के समर्थन में बोल रहे हैं।
  • प्रथम विश्व युद्ध के पहले फ़लस्तीन ऑटोमन साम्राज्य का एक इलाक़ा था। ऐसे में अर्दोआन के बढ़-चढ़कर बोलने की एक ऐतिहासिक वजह यह भी है।

झगड़े का केंद्र यरुशलम क्यों

  • पुराने यरुशलम के बीचोंबीच ‘टेंपल माउंट’ नाम की एक पहाड़ी है, जिसे यहूदियों के सबसे पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता है।
  • मुस्लिमों के बीच यह स्थल ‘हरम अस-शरीफ’ नाम से मशहूर है।
  • वहीं, ईसाइयों का मानना है कि ईसा मसीह ने इसी स्थान पर धार्मिक उपदेश दिया था, उन्हें यहीं पर सूली पर लटकाया था, जिसके कुछ दिनों बाद वह एक बार फिर प्रकट हुए थे।

क्या हैं मुख्य समस्याएँ?

ऐसे कई मुद्दे हैं जिस पर इसराइली और फ़लस्तीनी कभी सहमत ही नहीं हो सकते हैं।

  • इनमें कई समस्याएँ हैं जैसे कि फ़लस्तीनी शरणार्थियों के साथ क्या होना चाहिए, क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियों का क्या किया जाएगा, क्या वे हटाई जाएँगी या नहीं।
  • इसके अलावा यरुशलम को दोनों पक्ष कैसे बाँटेंगे और इसके साथ ही सबसे मुश्किल समस्या यह है कि क्या फ़लस्तीनी राष्ट्र इसराइल के साथ बनाया जाएगा या कहीं और।
  • शांति वार्ता बीते 25 सालों से शुरू होती है और बंद हो जाती है लेकिन ये संघर्ष को नहीं सुलझा पाई है।
  • अधिकतर फ़लस्तीनी शरणार्थी और उनके वंशज गज़ा और वेस्ट बैंक में रहते हैं और साथ ही साथ जॉर्डन, सीरिया और लेबनान में भी रहते हैं। न ही उनको और न ही उनके वंशजों को इसराइल ने अपने घरों को वापस लौटने की अनुमति दी। इसराइल कहता है कि इससे उसका देश प्रभावित होगा और यहूदी राष्ट्र के अस्तित्व को ख़तरा होगा।
  • इसराइल का अभी भी वेस्ट बैंक पर क़ब्ज़ा है और गज़ा से वो पीछे हट चुका है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र अभी भी मानता है कि यह उसके क़ब्ज़े वाले क्षेत्र का हिस्सा है।
  • इसराइल दावा करता है कि पूरा यरुशलम उसकी राजधानी है जबकि फ़लस्तीनी पूर्वी यरुशलम को भविष्य के फ़लस्तीनी राष्ट्र की राजधानी मानते हैं। अमेरिका उन चंद देशों में से एक है जो पूरे शहर पर इसराइल के दावे को मानता है।
  • बीते 50 सालों में इसराइल ने इन इलाक़ों में कई बस्तियाँ बसा दी हैं जहाँ पर छह लाख से अधिक यहूदी रहते हैं।
  • फ़लस्तीनी कहते हैं कि ये यहूदी बस्तियाँ अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार अवैध हैं और शांति में बाधा हैं जबकि इसराइल इस दावे को ख़ारिज करता है।

भविष्य कैसा होगा?

कम शब्दों में कहें यह स्थिति अभी किसी भी सूरत में हल नहीं होगी। भविष्य में किसी भी शांति समझौते के लिए दोनों पक्षों को कई जटिल मुद्दों पर सहमत होना होगा। वरना तब तक यह टकराव यूं ही जारी रहेगा।

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