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जानिए स्वेज नहर के बारे में

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स्वेज नहर क्यों है चर्चा में

स्वेज नहर में 23 मार्च से लगा जाम आखिरकार 29 मार्च को खुल गया। नहर में फंसे ‘एवरग्रीन’ नाम के जहाज को छह दिन बाद निकाल लिया गया। जहाज के फंसने की वजह से नहर में यातायात बंद हो गया था और हर घंटे करीब 3 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा था।

‘एवरग्रीन’ जहाज चीन से माल लादने के बाद नीदरलैंड के पोर्ट रॉटरडैम जा रहा था। यहां से गुजरने के दौरान तेज और धूलभरी हवा की वजह से जहाज नहर में ही फंस गया। 400 मीटर लंबे इस जहाज में 2 लाख टन से भी ज्यादा का माल लदा था। इस जहाज को 2018 में बनाया गया था, जिसे एवरग्रीन मरीन नामक कंपनी संचालित करती है। जहाज के चालक दल में 25 भारतीय भी शामिल थे। इस जहाज के फंसने से नहर में यातायात पूरी तरह बंद हो गया था और रोजाना करोड़ों का नुकसान हो रहा था। नहर के दोनों छोर पर करीब 150 जहाज फंस गए थे।  

इसलिए महत्वपूर्ण है स्वेज नहर

स्वेज नहर दुनिया के सबसे व्यस्ततम समुद्री मार्गों में से एक है। पूरी दुनिया में होने वाले समुद्री कारोबार का 12 फीसदी आवागमन इसी नहर से होता है। नहर बनने के बाद एशिया और यूरोप के बीच की दूरी 6000 किलोमीटर कम हो गई है। सफर में भी सात दिनों की कमी आई है। रोजाना यहां से लगभग 50 जहाज गुजरते हैं जिन पर 10 बिलियन डॉलर यानी करीब 73 हजार करोड़ रुपये तक का सामान लदा होता है।

नहर का इतिहास

1854 में फ्रांस के राजनयिक डि लेसेप्स ने स्वेज नहर को बनाने की योजना पर काम करना शुरू किया था।सन् 1858 में एक फ्रांसीसी इंजीनियर फर्डीनेण्ड की देखरेख में स्वेज नहर का निर्माण शुरु हुआ था। इसलिए एक कंपनी की स्थापना की गई जिसका नाम यूनिवर्सल स्वेज शिप कैनाल कंपनी था। इस कंपनी को 99 साल के लिए नहर के निर्माण और संचालन का काम सौंपा गया। ये नहर 1869 में बनकर तैयार हुई और इसे अंतरराष्ट्रीय यातायात के लिए खोल दिया गया।

इस नहर का प्रबंध पहले “स्वेज कैनाल कंपनी” करती थी जिसके आधे शेयर फ्रांस के थे और आधे शेयर तुर्की, मिस्र और अन्य अरब देशों के थे। बाद में मिस्र और तुर्की के शेयरों को अंग्रेजों ने खरीद लिया। 1888 ई. में एक अंतरराष्ट्रीय उपसंधि के अनुसार यह नहर युद्ध और शांति दोनों कालों में सब राष्ट्रों के जहाजों के लिए बिना रोकटोक समान रूप से आने-जाने के लिए खुली थी। ऐसा समझौता था कि इस नहर पर किसी एक राष्ट्र की सेना नहीं रहेगी। किन्तु अंग्रेजों ने 1904 ई. में इसे तोड़ दिया और नहर पर अपनी सेनाएँ बैठा दीं और उन्हीं राष्ट्रों के जहाजों के आने-जाने की अनुमति दी जाने लगी जो युद्धरत नहीं थे। 1947 ई. में स्वेज कैनाल कंपनी और मिस्र सरकार के बीच यह निश्चय हुआ कि कंपनी के साथ 99 वर्ष का पट्टा रद्द हो जाने पर इसका स्वामित्व मिस्र सरकार के हाथ आ जाएगा। 1951 ई. में मिस्र में ग्रेट ब्रिटेन के विरुद्ध आंदोलन छिड़ा और अंत में 1954 ई. में एक करार हुआ जिसके अनुसार ब्रिटेन की सरकार कुछ शर्तों के साथ नहर से अपनी सेना हटा लेने पर राजी हो गई। पीछे मिस्र ने इस नहर का 1956 में राष्ट्रीयकरण कर इसे अपने पूरे अधिकार में कर लिया।

स्वेज़ नहर (Svez Nahar ) लाल सागर और भूमध्य सागर को संबंद्ध करने वाली एक नहर है। यह नहर आज 193 किमी लम्बी, 60 मी चौड़ी और औसत गहरी 16.5 मी है। दस वर्षों में बनकर यह तैयार हो गई थी। सन् 1869 में यह नहर यातायात के लिए खुल गई थी। पहले केवल दिन में ही जहाज नहर को पार करते थे पर 1887 ई. से रात में भी पार होने लगे। 1866 ई. में इस नहर के पार होने में 36 घण्टे लगते थे पर आज 18 घण्टे से कम समय ही लगता है। यह वर्तमान में मिस्र देश के नियन्त्रण में है। इस नहर का चुंगी कर बहुत अधिक है। इस नहर की लम्बाई पनामा नहर की लम्बाई से दुगुनी होने के बाद भी इसमें पनामा नहर के खर्च का 1/3 धन ही लगा है।

1956 में मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल नासिर ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। स्वेज नहर कंपनी में ज्यादातर शेयर ब्रिटिश और फ्रांस सरकार के थे। नासिर के इस कदम से दोनों देशों में हड़कंप मच गया। ब्रिटेन, फ्रांस और इजराइल ने मिस्र पर हमला कर दिया। हालांकि अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की वजह से ब्रिटेन और फ्रांस को अपनी सेना वापस बुलानी पड़ी। इसके बाद से नहर पर मिस्र का अधिकार है। 

इससे पहले भी बंद रही है स्वेज नहर

26 जुलाई 1956 को पहली बार इस नहर को बंद किया गया था। नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा के बाद उपजे विवाद के कारण ये फैसला लिया गया था। 
जून 1967 में इजराइल का मिस्र, सीरिया और जॉर्डन से युद्ध छिड़ गया था। छह दिन चले इस युद्ध के दौरान 15 जहाज स्वेज नहर के रास्ते में फंस गए थे। इनमें से एक जहाज डूब गया था और बाकी 14 अगले आठ साल तक कैद होकर रह गए। इसके कारण इस नहर से व्यापार आठ साल तक बंद रहा था।
साल 2004, 2006 और 2017 में जहाजों के फंसने के कारण यातायात कुछ दिनों के लिए बाधित हुआ था।

उपयोगिता

इस नहर के कारण यूरोप से एशिया और पूर्वी अफ्रीका का सरल और सीधा मार्ग खुल गया और इससे लगभग 6,000 मील की दूरी की बचत हो गई। इससे अनेक देशों, पूर्वी अफ्रीका, ईरान, अरब, भारत, पाकिस्तान, सुदूर पूर्व एशिया के देशों, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों के साथ व्यापार में बड़ी सुविधा हो गई है और व्यापार बहुत बढ़ गया है।

यातायात

स्वेज नहर में यातायात कॉन्वॉय (सार्थवाह) के रूप में होता है। प्रतिदिन तीन कॉन्वॉय चलते हैं, दो उत्तर से दक्षिण तथा एक दक्षिण से उत्तर की तरफ। जलयानों की गति 11 से 16 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच होती है। इस नहर की यात्रा का समय 12 से 16 घंटों का होता है।

स्वेज नहर का जलमार्ग

स्वेज नहर जलमार्ग में जलयान 12 से 15 किमी प्रति घंटे की गति से चलते है क्योंकि तेज गति से चलने पर नहर के किनारे टूटने का भय बना रहता है। इस नहर को पार करने में सामान्यत: 12 घंटे का समय लगता है। इस नहर से एक साथ दो जलयान पार नही हो सकते हैं लेकिन, जब एक जलयान निकलता है तो दूसरे जलयान को गोदी में बाँध दिया जाता है इस प्रकार इस नहर से होकर एक दिन मे अधिक से अधिक 24 जलयानो का आवागमन हो सकता है।

  • स्वेज नहर बन जाने से यूरोप एवं सुदूर पूर्व के देशों के मध्य दूरी काफी कम हो गयी है। जैसे की लिवरपूल से मुम्बई आने में 7250 किमी तथा हांगकांग पहुँचने मे 4500 किमी; न्यूयार्क से मुम्बई पहुँचने मे 4500 किमी की दूरी कम हो जाती है। इस नहर के कारण ही भारत तथा यूरोपीय देशों के बीच व्यापारिक सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए हैं।

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