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परिसीमन: दक्षिणी राज्यों और संसदीय सीटों पर प्रभाव

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क्या होता है परिसीमन?

  • परिसीमन से तात्पर्य किसी देश में आबादी का प्रतिनिधित्त्व करने हेतु किसी राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना है।
  • इसमें परिसीमन आयोग को बिना किसी कार्यकारी प्रभाव के काम करना होता है।
  • संविधान के अनुसार, आयोग का निर्णय अंतिम होता है और उसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसा करने से चुनाव में हमेशा ही देरी होती रहेगी।
  • परिसीमन आयोग के आदेश लोकसभा या राज्य विधानसभा के समक्ष रखे जाते हैं, तो वे आदेशों में कोई संशोधन नहीं कर सकते हैं।

चर्चा में क्यों?

दक्षिणी राज्यों के कई राजनेता जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के विरोध में आवाज़ उठा रहे हैं, जिसे वे अनुचित मानते हैं। जनसंख्या नियंत्रण नीतियों का पालन करने वाले दक्षिणी राज्य अब जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में अपनी सफलता के बावजूद संभावित नुकसान का सामना कर रहे हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों की चिंताओं को संबोधित करते हुए आश्वासन दिया कि परिसीमन के बाद दक्षिणी राज्य कोई संसदीय सीट नहीं खोएंगे। उत्तर की तुलना में दक्षिण में धीमी जनसंख्या वृद्धि के कारण, नवीनतम आंकड़ों के आधार पर परिसीमन से उत्तरी राज्यों की सीटों में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।

परिसीमन, जो निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को फिर से निर्धारित करता है, विलंबित जनगणना के बाद अपेक्षित है और शुरुआत में 2026 के लिए निर्धारित किया गया था। स्वतंत्र भारत के इतिहास में, परिसीमन चार बार हुआ है – 1952, 1963, 1973 और 2002।

2026 में होगा परिसीमन?

साल 1976 में लोकसभा सीटों के लिए आखिरी बार परिसीमन हुआ था। अब 2026 में यही प्रक्रिया दोबारा शुरू होनी है। हालांकि अभी तक स्पष्ठ तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि 2026 में परिसीमन होगा ही। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि परिसीमन से पहले जनगणना जरूरी है। जो 2021 में होनी थी लेकिन अब तक नहीं हो सकी। जनगणना को लेकर हुई देरी की वजह से साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता कि 2026 में परिसीमन होगा या नहीं।

परिसीमन की आवश्यकता

  • जनसंख्या के प्रत्येक वर्ग के नागरिकों को प्रतिनिधित्व का समान अवसर प्रदान करना।
  • भौगोलिक क्षेत्रों का उचित विभाजन ताकि चुनाव में किसी एक राजनीतिक दल को दूसरों की अपेक्षा लाभ न हो।
  • “एक वोट एक मूल्य” के सिद्धांत का पालन करना।
  • संविधान के अनुच्छेद 82 में कहा गया है कि प्रत्येक जनगणना के बाद, जनसंख्या परिवर्तन के आधार पर लोकसभा सीटों का आवंटन समायोजित किया जाना चाहिए।
  • हालाँकि, अनुच्छेद 81 लोकसभा सदस्यों की कुल संख्या 550 तक सीमित करता है, जिसमें 530 राज्यों से और 20 केंद्र शासित प्रदेशों से होते हैं।
    इसके लिए यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक राज्य में जनसंख्या की तुलना में सीटों का अनुपात यथासंभव एक समान हो, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि देश भर के निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग समान जनसंख्या हो। लक्ष्य सभी निर्वाचन क्षेत्रों में समान जनसंख्या आकार बनाए रखते हुए समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है।
  • अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

परिसीमन आयोग

गठन:

परिसीमन आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है तथा भारत निर्वाचन आयोग के सहयोग से कार्य करता है।

संरचना:

परिसीमन आयोग भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है तथा भारत निर्वाचन आयोग के सहयोग से कार्य करता है।
सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
मुख्य निर्वाचन आयुक्त
संबंधित राज्य के निर्वाचन आयुक्त

कार्य:

सभी निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या को लगभग बराबर करने के लिये निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का निर्धारण करना।
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित सीटों की पहचान करना, जहाँ उनकी जनसंख्या अपेक्षाकृत अधिक है।
शक्तियाँ:
आयोग के सदस्यों के बीच मतभेद के मामले में बहुमत की राय प्रबल होती है।
भारत में परिसीमन आयोग एक उच्च-शक्ति प्राप्त निकाय है, जिसके आदेशों को कानून का संरक्षण प्राप्त होता है और किसी भी न्यायालय के समक्ष इस पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है।

भारत में परिसीमन का इतिहास

  • 1976 से पहले: 1951, 1961 और 1971 की जनगणना के बाद, लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों का पुनर्वितरण किया गया।
  • 42वां संशोधन (1976): आपातकाल के दौरान, संसद ने परिवार नियोजन उपायों को लागू करते समय अधिक जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों को प्रतिनिधित्व खोने से रोकने के लिए 2001 की जनगणना तक सीटों की कुल संख्या को फ्रीज कर दिया।
  • 2001 परिसीमन: जबकि निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं फिर से निर्धारित की गईं, दक्षिणी राज्यों के विरोध के कारण सीटों की संख्या अपरिवर्तित रही।

परिसीमन की प्रक्रिया:

  • प्रत्येक जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है।
  • अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को भी प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
  • एक बार अधिनियम लागू होने के बाद केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है।
  • हालाँकि पहला परिसीमन अभ्यास राष्ट्रपति द्वारा (निर्वाचन आयोग की मदद से) 1950-51 में किया गया था।
  • परिसीमन आयोग अधिनियम 1952 में अधिनियमित किया गया था।
  • 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के आधार पर चार बार वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है।
  • परिसीमन आयोग प्रत्येक जनगणना के बाद संसद द्वारा परिसीमन अधिनियम लागू करने के बाद अनुच्छेद 82 के तहत गठित एक स्वतंत्र निकाय है।
  • वर्ष 1981 और वर्ष 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं किया गया।

परिसीमन संबंधी चिंताएँ:

महिला आरक्षण

महिला आरक्षण विधेयक संसद से पास हो गया है, लेकिन इसके कानून बनने में देरी का सबसे बड़ा और अहम कारण परिसीमन है। देश की जनगणना के बाद परिसीमन होगा, जिसके चलते इसमें देरी होगी। सरकार की मानें तो इसे 2029 तक लागू किया जा सकता है।

अभी तक लोकसभा की कुछ सीटों को अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित किया गया है। अब महिला आरक्षण बिल लागू होने से महिलाओं को भी 33 फीसद आरक्षण मिलेगा।

अब तक मतगणना के बाद क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों के लोगों को जनसँख्या के आधार पर ही आरक्षण दिया जाता है। माना जा रहा है कि महिला आरक्षण पर भी यही फार्मूला अपनाया जा सकता है।

परिसीमन का चुनाव पर प्रभाव

दक्षिण में क्षेत्रीय दलों को डर है कि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन से उत्तर भारत में मजबूत आधार वाली पार्टियों को फायदा होगा। दक्षिणी राज्यों को डर है कि नवीनतम जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर परिसीमन से संसद में उनका प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा, जिससे उनका राजनीतिक प्रभाव कमजोर हो जाएगा।

क्षेत्रीय असमानता:

  • निर्णायक कारक के रूप में जनसंख्या के कारण लोकसभा में भारत के उत्तर और दक्षिणी भाग के बीच प्रतिनिधित्व में असमानता है।
  • केवल जनसंख्या पर आधारित परिसीमन दक्षिणी राज्यों द्वारा जनसंख्या नियंत्रण में की गई प्रगति की अवहेलना करता है और संघीय ढाँचे में असमानताओं का कारण बनता है।
  • देश की जनसंख्या का केवल 18% होने के बावजूद दक्षिणी राज्य देश के सकल घरेलू उत्पाद में 35% योगदान करते हैं।
  • उत्तरी राज्य जनसंख्या नियंत्रण को प्राथमिकता नहीं देते हैं तथा उच्च जनसंख्या वृद्धि के कारण परिसीमन प्रक्रिया में उन्हें लाभ मिलने की उम्मीद है।

अपर्याप्त वित्तपोषण:

  • 15वें वित्त आयोग द्वारा 2011 की जनगणना को अपनी सिफारिश के आधार के रूप में उपयोग करने के बाद दक्षिणी राज्यों के संसद में वित्तपोषण और प्रतिनिधित्व खोने के बारे में चिंता जताई गई।
  • इससे पहले 1971 की जनगणना को राज्यों को वित्तपोषण और कर विचलन सिफारिशों के आधार के रूप में उपयोग किया गया था।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को प्रभावित करना:

यह अभ्यास प्रत्येक राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (SC/ST) के लिये आरक्षित सीटों के विभाजन को भी प्रभावित करेगा (अनुच्छेद 330 और 332 के तहत)।

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