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गोविंद बल्लभ पंत

गोविंद बल्लभ पंत (10 September 1887 – 7 March 1961) के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य| Important Facts about Govind Ballabh Pant

गोविंद बल्लभ पंत (10 September 1887 – 7 March 1961)

गोविंद बल्लभ पंत
  • गोविंद बल्लभ पंत को देश के सबसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और एक कुशल प्रशासक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने आधुनिक भारत के मौजूदा स्वरूप को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
  • उन्होंने वर्ष 1937-1939 के बीच संयुक्त प्रांत के प्रीमियर, वर्ष 1946-1954 तक उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और वर्ष 1955-1961 तक केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में कार्य किया। 
  • वे उत्तर प्रदेश राज्य के प्रथम मुख्य मन्त्री और भारत के चौथे गृहमंत्री थे।
  •  गृहमंत्री के रूप में उनका मुख्य योगदान भारत को भाषा के अनुसार राज्यों में विभक्त करना तथा हिन्दी को भारत की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना था।
  • उन्हें वर्ष 1957 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया था।

गोविंद बल्लभ पंत का प्रारंभिक जीवन

  • गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर, 1887 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा में हुआ था।
  • इनकी माँ का नाम गोविन्दी बाई और पिता का नाम मनोरथ पन्त था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी परवरिश उनके नाना श्री बद्री दत्त जोशी ने की।
  • जब वे 18 वर्ष के थे, तो उन्होंने गोपालकृष्ण गोखले और मदन मोहन मालवीय को अपना आदर्श मानते हुए भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस (INC) के सत्रों में एक स्वयंसेवक के रूप में काम करना शुरू किया।
  • वर्ष 1907 में उन्होंने कानून का अध्ययन करने का निर्णय लिया और कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 1910 में उन्होंने अल्मोड़ा में वकालत शुरू कर दी और बाद में वे काशीपुर (उत्तराखंड) चले गए।
  • 1909 में कानून की डिग्री सर्वोच्च अंकों के साथ हासिल की। इसके उपलक्ष्य में उन्हें कॉलेज की ओर से “लैम्सडेन अवार्ड” दिया गया।
  • काशीपुर में उन्होंने ‘प्रेम सभा’ नामक एक संगठन की स्थापना की, जिसने विभिन्न सामाजिक सुधारों की दिशा में काम करना शुरू किया, इस दौरान इस संगठन ने ब्रिटिश सरकार को करों का भुगतान न करने के कारण एक स्कूल को बंद किये जाने से भी बचाया।

राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान 

  • गोविंद बल्लभ पंत दिसंबर 1921 में काॅन्ग्रेस में शामिल हुए और जल्द ही असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए।
  • 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके उत्तर प्रदेश के कुछ नवयुवकों ने सरकारी खजाना लूट लिया तो उनके मुकदमें की पैरवी के लिये अन्य वकीलों के साथ पन्त जी ने जी-जान से सहयोग किया। उस समय वे नैनीताल से स्वराज पार्टी के टिकट पर लेजिस्लेटिव कौन्सिल के सदस्य भी थे।
  • 1927 में राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ व उनके तीन अन्य साथियों को फाँसी के फन्दे से बचाने के लिये उन्होंने पण्डित मदन मोहन मालवीय के साथ वायसराय को पत्र भी लिखा किन्तु गान्धी जी का समर्थन न मिल पाने से वे उस मिशन में कामयाब न हो सके।
  • वर्ष 1930 में गांधी जी के कार्यों से प्रेरित होकर ‘नमक मार्च’ का आयोजन करने के कारण उन्हें कैद कर लिया गया।
  • वह उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रांत) विधानसभा के लिये नैनीताल से ‘स्वराजवादी पार्टी’ के उम्मीदवार के रूप में चुने गए थे।
    • सरकार में रहते हुए उन्होंने ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करने के उद्देश्य से कई सुधार किये।
    • उन्होंने देश भर में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित किया और कुली-भिक्षुक कानून का भी विरोध किया, जिसके तहत कुली और भिक्षुकों को बिना किसी पारिश्रमिक के ब्रिटिश अधिकारियों का भारी सामान ढोने के लिये मजबूर किया जाता था।
    • गोविंद बल्लभ पंत सदैव अल्पसंख्यक समुदाय के लिये एक अलग निर्वाचक मंडल के खिलाफ रहे, वे मानते थे कि यह कदम समुदायों को विभाजित करेगा।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पंत जी ने गांधी जी और सुभाष चंद्र बोस के गुटों के बीच समझौता करने का भी प्रयास किया, जहाँ एक ओर गांधी जी और उनके समर्थक चाहते थे कि युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन का समर्थन किया जाए, वहीं सुभाष चंद्र बोस गुट का मत था कि इस युद्ध की स्थिति का प्रयोग किसी भी तरह से ब्रिटिश राज को समाप्त करने के लिये किया जाए।
  • वर्ष 1942 में उन्हें भारत छोड़ो प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के लिये गिरफ्तार किया गया और उन्होंने मार्च 1945 तक काॅन्ग्रेस कार्य समिति के अन्य सदस्यों के साथ अहमदनगर किले में कुल तीन वर्ष बिताए।
  • अंततः पंडित नेहरू खराब स्वास्थ्य  के आधार पर पंत जी को जेल से छुड़ाने में सफल रहे।

स्वतंत्रता के बाद

  • स्वतंत्रता के बाद गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। उन्होंने किसानों के उत्थान और अस्पृश्यता के उन्मूलन की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
  • सरदार पटेल की मृत्यु के बाद गोविंद बल्लभ पंत को केंद्र सरकार में गृह मंत्री बनाया गया था।
  • गृह मंत्री के तौर पर उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का समर्थन किया।
  • 7 मार्च 1961 को हृदयाघात से जूझते हुए उनकी मृत्यु हो गयी। उस समय वे भारत सरकार में केन्द्रीय गृह मन्त्री थे।

हाल ही में प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी गोविंद बल्लभ पंत की प्रतिमा का अनावरण नई दिल्ली के पंडित पंत मार्ग पर किया गया है।

  • यह मूर्ति पहले रायसीना रोड सर्कल के पास स्थित थी, जिसे यहाँ से स्थानांतरित किया गया है क्योंकि यह ‘नए संसद भवन’ की संरचना के भीतर आ रही थी।

स्रोत: पी.आई.बी.

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