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बिहार की भूगर्भिक संरचना | Important Points

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बिहार की भूगर्भिक संरचना

बिहार की भूगर्भिक संरचना के अध्ययन हेतु विभिन्न युग में निर्मित चट्टानों का प्रयोग किया जाता है।  प्री-कैंब्रियन काल से लेकर चतुर्थ काल तक की चट्टाने पाई जाती है। 

भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से बिहार के चट्टानों को भागों में विभाजित किया गया है :-

  • धारवाड़ चट्टान
  • विंध्यन चट्टान
  • टर्शियरी चट्टान
  • क्वार्टरनरी चट्टान

धारवाड़ चट्टान (Dharwar Rock)

  • धारवाड़ चट्टान का निर्माण प्री-कैंब्रियन युग में हुआ है।
  • इन चट्टानों का निर्माण आर्कियन क्रम की चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण से हुआ है| इसलिए ये अवसादी चट्टानें हैं|
  • ये सबसे प्राचीन अवसादी चट्टानें हैं|
  • अरावली पर्वतमाला, जोकि विश्व के सबसे प्राचीन वलित पर्वतों में से है, का निर्माण इसी क्रम की चट्टानों से हुआ है|
  • इस क्रम की चट्टानें कर्नाटक के धारवाड़ व शिमोगा जिले में पायी जाती हैं, इसीलिए इन्हें ‘धारवाड़’ नाम दिया गया है|
  • यह चट्टानें बिहार के दक्षिणी पूर्वी भाग में पाई जाती है जिसका विस्तार जमुई, नवादा, मुंगेर में स्थित खड़कपुर की पहाड़ी, राजगीर और बोधगया आदि क्षेत्रों में है। 
  • शिस्ट, स्लेट, क्वाटूजाइट और कांग्लोमेरेट इसी वर्ग की चट्टानें हैं।
  • इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं|
  • भारत में पायी जाने वाली समस्त चट्टानों में आर्थिक दृष्टि से यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण चट्टान है।
  • देश में उपलब्ध लगभग सभी धातुएं इन्हीं चट्टानों की देन हैं। ये धातुएं हैं-सोना, तांबा, लोहा, मैंगनीज जस्ता, टंगस्टन, क्रोमियम आदि।
  • इन धातुओं के अलावा कई खनिज पदार्थ भी इन चट्टानों से प्राप्त होते हैं- सीसा, अभ्रक, कोबाल्ट, फ्लूराइट, इल्मैनाइट, ग्रेनाइट, बजफ्राम, गारनेट, एस्बेस्टस, कोरडम और संगमरमर आदि।
  • धातुओं में सोना मुख्य रूप से कर्नाटक के कोलार क्षेत्र में और धारवाड़ की घाटी में मिलता है और लोहा मुख्य रूप से बिहार, मध्य प्रदेश, ओडीशा, गोवा व कर्नाटक में मिलता है।

विंध्यन चट्टान (Vindhyan Rock)

  • इसका नामकरण विंध्याचल के नाम पर किया गया है। जल निक्षेपों के द्वारा निर्मित ये परतदार चट्टानें हैं। यह प्रमाणित है कि निक्षेप समुद्र एवं नदी घाटियों में ही एकत्र हुए थे। क्योंकि, विंध्यन चट्टानों से बलुआ पत्थर प्राप्त हुआ है, जो इस बात का सूचक है कि जिन निक्षेपों से इन चट्टानों का निर्माण हुआ है, वह छिछले सागर में ही एकत्र हुए थे।
  • विंध्यन चट्टान का निर्माण भी प्री-कैंब्रियन युग में हुआ है।
  • यह चट्टाने बिहार के दक्षिण पश्चिम भाग में पाई जाती है। जिसका विस्तार सोन नदी के उत्तर में कैमूर रोहतास आदि क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • विंध्यन क्रम की चट्टाने सामान्यता जीवाश्म विहीन होती है। कैमूर क्रम की चट्टाने में कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति से वनस्पतिक जीवन के कुछ संकेत मिलते हैं। 
  • विंध्यन चट्टानों का प्रयोग सासाराम में स्थित शेरशाह सूरी के मकाबरे, सारनाथ के स्तूप, दिल्ली के लाल किले एवं जामा मस्जिद के निर्माण में हुआ है।
  • मध्य प्रदेश की पन्ना की खानें और कर्नाटक की गोलकुंडा की खानें, जहां से हीरा प्राप्त होता है, विंध्यन क्रम की चट्टानों में ही स्थित हैं|

टर्शियरी चट्टान (Tertiary Rock)

  • यह चट्टाने बिहार के उत्तर पश्चिम भाग में पाई जाती है। जिसका विस्तार सोमेश्वर की पहाड़ी, दून की घाटी तथा शिवालिक श्रेणी के मध्य हैं। 
  • टर्शियरी चट्टान में कंग्लोमेरेट, बालू तथा चूना पत्थर आदि के निक्षेप पाए जाते हैं।
  • इसमें खनिज तेल के संचित भंडार हैं जिसका निर्माण टेथीस सागर के नीक्षेप के कारण हुआ है।

टर्शियरी कल्प (Epoh) को कालक्रम के अनुसार चार भागों में बांटा जाता है- (a) इओसीन (b) ओलिगोसीन  (c) मायोसीन  (d) प्लायोसीन |

  • इस कल्प के दौरान हिमालय का निर्माण निम्नलिखित क्रम से हुआ है:
  • I. वृहत हिमालय का निर्माण ओलिगोसीन काल के दौरान हुआ था|
  • II. लघु या मध्य हिमालय का निर्माण मायोसीन काल के दौरान हुआ था|
  • III. शिवालिक हिमालय का निर्माण प्लायोसीन काल के दौरान हुआ था|
  • असम, गुजरात व राजस्थान से मिलने वाला खनिज तेल इओसीन और ओलिगोसीन काल की चट्टानों से ही प्राप्त होता है|
बिहार की भूगर्भिक संरचना

क्वार्टरनरी चट्टान (Quarternary Rock)

  • ये चट्टानें गंगा एवं सिंधु के मैदान में पायी जाती है|
  • बिहार का मैदान, गंगा के मैदान का ही एक भाग है।  क्वार्टरनरी युग की चट्टान परतदार होती है जिसका निर्माण वर्तमान में भी जारी है। इस चट्टान का निर्माण जलोढ़, बालू, बजरी, पत्थर और कंग्लोमेरेट से बनी चट्टानों से हुआ है। 
  • क्वार्टनरी युग को कालक्रम के अनुसार निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है- प्लीस्टोसीन एवं होलोसीन काल|
  • ऊपरी एवं मध्य प्लीस्टोसीन काल में पुरानी जलोढ़ मृदा का निर्माण हुआ था, जिसे आज ‘बांगर’ नाम से जाना जाता है|
  • प्लीस्टोसीन के अन्तिम समय से लेकर होलोसीन तक जिस नवीन जलोढ़ मृदा का निर्माण जारी रहा, उसे ‘खादर’ कहा जाता है|
  • कश्मीर की घाटी का निर्माण प्लीस्टोसीन काल में ही हुआ था| कश्मीर की घाटी प्रारम्भ में एक झील थी, लेकिन इसमें लगातार मलबे के निक्षेपित होते रहने से यह घाटी रूप में बदल गयी, जिसे ‘करेवा’ कहा जाता है|
  • प्लीस्टोसीन काल के निक्षेपण थार मरुस्थल में भी पाये जाते हैं|
  • कच्छ का रन’ पूर्व में समुद्र का भाग था, लेकिन प्लीस्टोसीन व होलोसीन काल के दौरान यह अवसादी निक्षेपों से भर गया|

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