अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण समूह का परिचय
अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण समूह प्रमुख आपूर्तिकर्ता देशों द्वारा बनाए गए स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी समझौते हैं जो कुछ सैन्य और दोहरे उपयोग प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण को रोकने और विनियमित करने के अपने प्रयास में सहयोग करने के लिए सहमत हुए हैं। इसका उद्देश्य सामूहिक विनाश के हथियारों (WMD) के प्रसार को रोकना है।
- ये समूह संयुक्त राष्ट्र से स्वतंत्र हैं।
- इनके नियम केवल सदस्यों पर लागू होते हैं और किसी देश के लिए इसमें शामिल होना अनिवार्य नहीं है।
- भारत अब परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह को छोड़कर, चार अंतरराष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण समूहों में से तीन का सदस्य है।
अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण समूहों के तहत वर्तमान में चार व्यवस्थाएं हैं:
- परमाणु संबंधित प्रौद्योगिकी के नियंत्रण के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी)।
- रासायनिक और जैविक प्रौद्योगिकी के नियंत्रण के लिए ऑस्ट्रेलिया समूह (एजी) जिसे हथियार बनाया जा सकता है।
- सामूहिक विनाश के हथियार पहुंचाने में सक्षम रॉकेट और अन्य हवाई वाहनों के नियंत्रण के लिए मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर)।
- पारंपरिक हथियारों और दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों के लिए निर्यात नियंत्रण पर वासेनार व्यवस्था।
वासेनार अरेंजमेंट (Wassenaar Arrangement-WA)
- इसकी स्थापना जुलाई 1996 में वासेनार (नीदरलैंड्स) में की गई थी। इसका मुख्यालय वियना (ऑस्ट्रिया) में है।
- परंपरागत हथियारों और दोहरे उपयोग वाली वस्तु और प्रौद्योगिकी के निर्यात पर नियंत्रण रखना और परमाणु प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के दुरुपयोग जैसे- सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने में इस्तेमाल को रोकना इसके प्रमुख उद्देश्यों में शामिल हैं।
- दोहरे उपयोग से तात्पर्य एक अच्छी या तकनीक की क्षमता से है जिसका उपयोग कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है – आमतौर पर शांतिपूर्ण और सैन्य।
- दिसंबर 2017 में 42वें सदस्य के रूप में भारत इसमें शामिल हुआ था।
- भारत के वासेनार व्यवस्था में शामिल होने का तात्पर्य यह है कि भारत को दोहरे उपयोग वाली तकनीक के लिए भी मान्यता प्राप्त है।
- इससे पहले एनएसजी में भारत के प्रयासों को चीन ने रोक दिया था, जो वासेनार अरेंजमेंट का सदस्य नहीं है।
- 2016 में एनएसजी में प्रवेश पाने के असफल प्रयास की तुलना में, वासेनार अरेंजमेंट सदस्यता को संवेदनशील परमाणु मुद्दों में भारत की कूटनीति की आवश्यकता के श्रेय के रूप में देखा जाता है।
- वासेनार व्यवस्था में भारत का प्रवेश एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में भारत की साख को मजबूत करेगा।
ऑस्ट्रेलिया समूह (Australia Group-AG)
- ऑस्ट्रेलिया ग्रुप उन देशों का सहकारी और स्वैच्छिक समूह है जो सामग्रियों, उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के निर्यात को नियंत्रित करते हैं ताकि, रासायनिक और जैविक हथियारों (Chemical and Biological Weapons-CBW) के विकास या अधिग्रहण में इनका प्रयोग ना किया जा सके।
- इसका यह नाम इसलिये है क्योंकि ऑस्ट्रलिया ने यह समूह बनाने के लिये पहल की थी और वही इस संगठन के सचिवालय का प्रबंधन देखता है।
- वार्षिक बैठक पेरिस, फ्रांस में आयोजित की जाती है।
- 1985 में ऑस्ट्रेलिया समूह (AG) का गठन ईरान-इराक युद्ध (1980-1988) के दौरान इराक द्वारा रासायनिक हथियारों के उपयोग से प्रेरित था।
- ऑस्ट्रेलिया समूह का मुख्य उद्देश्य रासायनिक तथा जैविक हथियारों की रोकथाम हेतु नियम निर्धारित करना है। ऑस्ट्रेलिया समूह इन हथियारों के निर्यात पर नियंत्रण रखने के अलावा 54 विशेष प्रकार के यौगिकों के प्रसार पर नियंत्रण रखता है।
- ऑस्ट्रेलिया समूह के सभी सदस्य रासायनिक हथियार सम्मेलन (Chemical Weapons Convention-CWC) और जैविक हथियार सम्मेलन (Biological Weapons Convention-BWC) का अनुसमर्थन करते हैं।
- भारत 19 जनवरी 2018 को ऑस्ट्रेलिया समूह (AG) में शामिल हो गया और समूह का 43वां सदस्य बन गया।
मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (Missile Technology Control Regime-MTCR)
- अप्रैल 1987 में जी-7 देशों सहित 12 विकसित देशों ने मिलकर आण्विक हथियार से युक्त प्रक्षेपास्त्रों के प्रसार को रोकने के लिये एक समझौता किया था, जिसे MTCR कहा गया।
- 26 जून, 2016 को भारत MTCR का पूर्ण सदस्य बना था।
- वर्तमान में एमटीसीआर 35 देशों का एक समूह है और चीन तथा पाकिस्तान इसके सदस्य नहीं हैं। फ्राँस, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका, इटली और कनाडा इसके संस्थापक सदस्यों में रहे हैं।
- स्वैच्छिक एमटीसीआर का उद्देश्य बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र तथा अन्य मानव रहित आपूर्ति प्रणालियों के विस्तार को सीमित करना है, जिनका रासायनिक, जैविक और परमाणु हमलों में उपयोग किया जा सकता है।
परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Suppliers Group-NSG)
- परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह 48 देशों का समूह है।
- इसका गठन 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के प्रतिक्रियास्वरूप किया गया था।
- परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह परमाणु प्रौद्योगिकी और हथियारों के वैश्विक निर्यात पर नियंत्रण रखता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परमाणु ऊर्जा का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये ही किया जाए।
- परमाणु हथियार बनाने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की आपूर्ति से लेकर नियंत्रण तक सभी इसी के दायरे में आते हैं।
- चीन एनएसजी का सदस्य है लेकिन वासेनार अरेंजमेंट और एमटीसीआर का नहीं।
- भारत एनएसजी का सदस्य नहीं है क्योंकि इसके सभी प्रयासों को चीन और कुछ अन्य सदस्यों द्वारा लगातार अवरुद्ध किया जा रहा है। भारत के परमाणु अप्रसार संधि के गैर-हस्ताक्षरकर्ता होने के आधार पर सदस्यता के लिए भारत की बोली को अवरुद्ध किया जा रहा है।
- जबकि फ्रांस को एनपीटी पर हस्ताक्षर किए बिना ही परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में सदस्यता मिल गई। फ़्रांस ने NSG की सदस्यता मिलने के बाद 1992 में NPT की पुष्टि की थी।
भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर करने से क्यों इनकार किया?
- एनपीटी (अप्रसार संधि) एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जो 1970 में लागू हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य परमाणु हथियारों और हथियार प्रौद्योगिकी के प्रसार को रोकना था।
- भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया क्योंकि (1) एनपीटी “परमाणु हथियार राज्यों” को परिभाषित करता है, जिन्होंने 1967 से पहले उपकरणों का परीक्षण किया था, जिसका अर्थ है कि भारत कभी परमाणु हथियार राज्य नहीं हो सकता। (2) निरस्त्रीकरण के लिए किसी निश्चित समय-सीमा का उल्लेख नहीं किया गया है। (3) एनपीटी अनुचित संधि है क्योंकि परमाणु हथियार वाले राज्यों पर उन्हें छोड़ने का कोई दायित्व नहीं है जबकि गैर-परमाणु राज्यों को उन्हें रखने की अनुमति नहीं है।
- भारत के अलावा पाकिस्तान और इस्राइल ने भी एनपीटी पर दस्तखत नहीं किए हैं।
निष्कर्ष
अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण समूह आज वैश्विक नियम-आधारित व्यवस्था में महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाले समूह है। इनकी सदस्यता न केवल अधिक से अधिक प्रौद्योगिकी और भौतिक पहुंच की अनुमति देती है बल्कि विश्व व्यवस्था के एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में एक राष्ट्र की विश्वसनीयता को बढ़ाती है। भारत दुनिया में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने की ओर अग्रसर है और इस प्रकार एक उभरती हुई शक्ति के रूप में अपने दावे को आगे बढ़ाने के लिए इन अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण समूहों में सदस्य बनकर भारत को अपने आवाज रखने की आवश्यकता है।
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