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डॉक्टर हर्ष वर्धन को ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप बोर्ड’ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया

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भारत से 2025 तक ट्यूबरकुलोसिस यानी क्षय रोग को समाप्त किए जाने के अभियान में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉक्टर हर्ष वर्धन को ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप बोर्ड’ यानी ‘टीबी रोको साझेदारी बोर्ड’ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।

स्टॉप टीबी पार्टनरशिप एक विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो दुनिया भर के विभिन्न पक्षों के साथ मिलकर टीबी के विरुद्ध संघर्ष का अभियान चलती है। 

इस बोर्ड का विजन है ‘टीबी मुक्त विश्व’।

स्टॉप टीबी पार्टनरशिप बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में डॉक्टर हर्षवर्धन जुलाई 2021 को अपना पद संभालेंगे और उनका कार्यकाल 3 वर्षों का होगा।

स्टॉप टीबी पार्टनरशिप का गठन वर्ष 2000 में किया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य जन स्वास्थ्य की समस्या बन चुके ट्यूबरकुलोसिस को जड़ से खत्म करना था।

संगठन का सचिवालय स्विट्जरलैंड के जेनेवा में स्थित है।

दुनिया में टीबी को खत्म करने की समय सीमा 2030 तय की गई है जबकि भारत ने इससे 5 वर्ष पहले 2025 तक देश से टीबी को जड़ से खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

भारत सरकार की टीबी को खत्म करने की राष्ट्रीय रणनीतिक योजना 2017-2025 एक महत्वाकांक्षी एजेंडा है, जो विश्व विश्व स्वास्थ्य संगठन की विश्व से टीबी खत्म करने की रणनीति से ज्यादा प्रभावी है, जिसके अंतर्गत भारत में राष्ट्रीय रणनीतिक योजना के तहत उन्नत चिकित्सा पद्धतियों और प्रयासों को चलाया जा रहा है और जिसने विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य देशों का ध्यान आकर्षित किया कि किस तरह भारत की कार्यशैली से वह लाभान्वित हो सकते हैं और सीख सकते हैं।

Covid-19 और टीबी रोग

कोविड-19 के दौरान अपनाए गए स्वभावगत व्यवहारों जैसे खाँसते या छींकते समय मुंह पर हाथ रखना, मास्क पहनना, सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करना इत्यादि, जिसने इस संचारी वायरस के प्रभाव को कम करने में अहम भूमिका अदा की है और ट्यूबरकुलोसिस के खिलाफ जागरूकता फैलाने में भी इन व्यवहारों का इस्तेमाल किया जाएगा।

महामारी के दौरान टेलीमेडिसिन और टेलीकंसल्टेशन की व्यवस्था में भी कई गुना की वृद्धि हुई, जो ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी से प्रभावित मरीजों के लिए भी उपयोगी हो सकती है।

सितंबर 2019 में डॉ हर्षवर्धन ने राष्ट्रीय टीबी प्रसार सर्वेक्षण के साथ-साथ ‘टीबी हारेगा देश जीतेगा’ नाम से एक नया और बेहद प्रभावी अभियान शुरू किया।

उसके बाद से अब तक इस अभियान से अनेक पक्षों के साथ-साथ सामुदायिक साझेदारी बढ़ी है जिससे देशव्यापी अभियान को बल मिला है।

इस अभियान को शुरू करने के 100 दिनों के भीतर ही देश के सभी जिलों में से 95% में पेशेंट फोरम बनाए गए जो देश से टीबी को यथासंभव कम से कम समय में खत्म करने की उनकी प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है।

कोविड-19 महामारी ने पूरी चिकित्सा व्यवस्था को कई वर्ष पीछे धकेल दिया और उपचार में व्यवधान, दवाओं की उपलब्धता की कमी, नैदानिक परीक्षण में असुविधा, जांच में देरी, आपूर्ति श्रृंखला में बाधा, विनिर्माण क्षमता में बाधा, और मरीजों के सामने सुदूर अस्पतालों में जाकर उपचार लेने में बाधा इत्यादि सामने आई। इन सभी चीजों को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने उच्चस्तरीय बैठक हर महीने जारी रखी ताकि सरकार के सभी स्तरों पर इन बाधाओं को किसी तरह से दूर किया जा सके और व्यवस्था फिर से पटरी पर आ सके।

इस संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कई कदम उठाए, जिसमें टीबी कोविड-19 जांच एक साथ करने का प्रबंध, आई एल आई और एस ए आर आई मामलों में जांच, निजी क्षेत्रों की सहभागिता को बढ़ावा देना और टीबी प्रोग्राम के लिए एच आर और सी बी एन ए ए टी तथा ट्रू नेट मशीनों को फिर से काम पर लगाना शामिल था।

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