बिहार के प्रमुख पुरास्थल
पुरास्थल उस स्थान को कहते हैं जहाँ औज़ार, बर्तन और इमारतों जैसी वस्तुओं के अवशेष मिलते हैं। ये ज़मीन के ऊपर, अन्दर, कभी-कभी समुद्र और नदी के तल में भी पाए जाते हैं। बिहार के प्रमुख पुरास्थल निम्न हैं –
नालंदा (बिहार के प्रमुख पुरास्थल)
नालंदा प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौद्ध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे।
इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम को प्राप्त है। गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा। इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। स्थानीय शासकों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही इसे अनेक विदेशी शासकों से भी अनुदान मिला।
यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था। विकसित स्थिति में इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10,000 एवं अध्यापकों की संख्या 2,000 थी। सातवीं सदी में जब ह्वेनसांन आया था उस समय 10,000 विद्यार्थी और 1510 आचार्य नालंदा विश्वविद्यालय में थे। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। नालंदा के विशिष्ट शिक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे। इस विश्वविद्यालय को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी।
नालंदा सम्बंधित अन्य तथ्य
- ऐसा माना जाता है कि अंतिम और सबसे प्रसिद्ध जैन तीर्थंकर, महावीर ने यहां 14 मानसून सीजन बिताए थे।
- कहा जाता है कि बुद्ध ने नालंदा में आम के बाग के पास व्याख्यान दिया था।
- इस शिक्षा केंद्र की ख्याति इस हद तक थी कि प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने यहां का दौरा किया और यहां कम से कम दो साल तक रहे। यहाँ तक कि एक अन्य प्रसिद्ध चीनी यात्री आई-त्सिंग भी लगभग 10 वर्षों तक नालंदा में रहा।
- नालंदा से खुदाई में बुद्ध की ताम्रमूर्ति प्राप्त हुई है।
- इस स्थल की सर्वप्रथम पहचान अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी।
- इस क्षेत्र में 1916 ई. में उत्खनन का कार्य स्पूनर और शास्त्री के नेतृत्व में आरंभ हुआ।
कुम्हरार (बिहार के प्रमुख पुरास्थल)
- कुम्हरार पटना के एक क्षेत्र का नाम है, जहां प्राचीन शहर पाटलिपुत्र के अवशेषों की खुदाई की गई थी। यह पटना रेलवे स्टेशन से 5 किमी पूर्व में स्थित है।
- मौर्य काल (322-185 ईसा पूर्व) के पुरातात्विक अवशेष यहां खोजे गए हैं, इसमें एक हाइपोस्टाइल 80-स्तंभ वाले हॉल के खंडहर शामिल हैं।
- यहां खुदाई की खोज 600 ईसा पूर्व की है, और अजातशत्रु, चंद्रगुप्त और अशोक की प्राचीन राजधानी को चिह्नित करती है, और सामूहिक रूप से अवशेष 600 ईसा पूर्व से 600 सीई तक चार निरंतर अवधियों से लेकर हैं।
- कुम्हरार से कुषाण एवं गुप्तकालीन अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
विक्रमशिला (बिहार के प्रमुख पुरास्थल)
- बिहार प्रांत के भागपलुर जिले में स्थित विक्रमशिला एक अन्तरराष्ट्रीय ख्याति का शिक्षा केन्द्र रहा है।
- विक्रमशिला के महाविहार की स्थापना नरेश धर्मपाल (775-800ई.) ने करवायी थी।
- यहाँ 160 विहार तथा व्याख्यान के लिये अनेक कक्ष बने हुये थे।
- धर्मपाल के उत्तराधिकारी तेरहवीं शताब्दी तक इसे राजकीय संरक्षण प्रदान करते रहे। परिणामस्वरूप विक्रमशिला लगभग चार शताब्दियों से भी अधिक समय तक अंतरराष्ट्रीय ख्याति का विश्वविद्यालय बना रहा। विश्वविद्यालय में अध्ययन के विशेष विषय व्याकरण, तर्कशास्त्र, मीमांसा, तंत्र, विधिवाद आदि थे।
- आचार्यों में दीपंकर श्रीज्ञान का नाम सर्वाधिक उल्लेखनीय है, जो इस विश्वविद्यालय के कुलपति थे।
- कहा जाता है की बख्तियार खिलजी नामक मुस्लिम आक्रमणकारी ने सन 1193 के आसपास इसे नष्ट कर दिया था| वर्तमान समय में विश्वविद्यालय के भग्नावशेष को देख कर इसके गौरवशाली अतीत और विख्याति की अनुभूति कर सकते है।
दीदारगंज (बिहार के प्रमुख पुरास्थल)
- दीदारगंज पटना के समीप स्थित है।
- 1917 ई. में यहाँ से एक यक्षिणी की मूर्ति मिली है जो अपने हाथ में चँवर लिए हुई है।
- इस मूर्ति की महत्वपूर्ण विशेषता चमकीली पॉलिश है।
- यह मूर्ति मौर्यकालीन है, जो अत्यंत सुंदर दिखती है।
- मूर्ति का अंग-प्रत्यंग सजीव-सा प्रतीत होता है।
- मूर्ति के ऊपरी भाग में वस्त्र नहीं है जबकि अधोभाग में साड़ी पहन रखी है।
- गले में मुक्ता की माला है।
- यह मूर्ति पटना संग्रहालय में सुरक्षित है।
चिरांद (बिहार के प्रमुख पुरास्थल)
- वर्तमान में यह सारण जिला में अवस्थित है।
- यहाँ से पत्थर के औजार, मिट्टी तथा हड्डी के बने सामान और बर्तन उत्खनन में प्राप्त हुए हैं।
- ये सामग्रियाँ यहाँ के आदिमानव की गतिविधियों के महत्वपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
- ये सभी सामग्रियाँ नव पाषाण युग और ताम्र पाषाण युग के हैं।
चेचर (बिहार के प्रमुख पुरास्थल)
- चेचर वैशाली जिला में अवस्थित है।
- यहाँ नव पाषाणयुगीन आदि मानव से संबंधित अनेक सामग्रियाँ मिली हैं।
सोनपुर गाँव (बिहार के प्रमुख पुरास्थल)
- यह गया जिला में अवस्थित है।
- यहाँ से खुदाई में मिट्टी की कुछ महत्वपूर्ण सामग्री, मृदभांड एवं अन्य चीजें प्राप्त हुई हैं।
- इन प्राप्त सामग्रियों को ताम्र-पाषाणयुगीन मन जा रहा है ।
केसरिया स्तूप (बिहार के प्रमुख पुरास्थल)
- केसरिया स्तूप पूर्वी चम्पारण से 35 किलोमीटर दूर दक्षिण साहेबगंज – चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है|
- यह पुरातात्विक महत्व का प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है|
- यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है|
- बुद्ध ने वैशाली से कुशीनगर जाते हुए एक रात केसरिया में बितायी थी तथा लिच्छविओं को अपना भिक्षा पात्र प्रदान किया था | कहा जाता है की जब भगवान बुद्ध यहाँ से जाने लगे तो लिच्छविओं ने उन्हें रोकने का काफी प्रयास किया| लेकिन जब लिच्छवि नहीं माने तो भगवान बुद्ध ने उन्हें रोकने के लिए नदी में कृत्रिम बाढ़ उत्पन की| इसके पश्चात ही भगवान् बुद्ध यहाँ से जा पाने में सफल हो सके थे|
- सम्राट अशोक ने यहाँ एक स्तूप का निर्माण करवाया था| वर्तमान में यह स्तूप १४०० फ़ीट के क्षेत्र में फैला हुआ है| केसरिया बौद्ध स्तूप की ऊंचाई आज भी 104 फ़ीट है , इसे विश्व का सबसे बड़ा स्तूप माना जाता है|
लौरिया नंदनगढ़ (बिहार के प्रमुख पुरास्थल) और लौरिया अरेराज (बिहार के प्रमुख पुरास्थल)
- यह स्थल पश्चिमी चंपारण जिला में अवस्थित है।
- सम्राट अशोक के प्रथम छह स्तम्भ लेख उत्तर बिहार में लौरिया नंदनगढ़, लौरिया अरेराज और रामपुरवा से प्राप्त हुए हैं।
- लौरिया प्रखंड में नंदनगढ़ से लगभग एक किलोमीटर पूर्व में अशोक का सिंह स्तंभ है, जो 2300 वर्ष से अधिक पुराना है और उत्कृष्ट स्थिति में है। इसकी विशालता और उत्कृष्ट फिनिश अशोकन युग के राजमिस्त्री के कौशल और संसाधनों का उल्लेखनीय प्रमाण प्रस्तुत करती है।
- कुषाण कल में यहाँ एक मुद्रालय भी था।
अशोक के स्तंभ (बिहार के प्रमुख पुरास्थल)
- यह स्तम्भ वैशाली शहर में स्थित है|
- इस अशोक स्तम्भ के शीर्ष पर केवल एक ही शेर है| स्तम्भ के समीप एक बौद्ध मठ भी है|
- वैशाली का यह स्तम्भ अशोक के अन्य दूसरे स्तम्भों से बिलकुल अलग है क्योंकि इस स्तम्भ के शीर्ष पर केवल एक ही शेर है और उसका मुंह उत्तर दिशा की ओर है जिस दिशा में तथागत बुद्ध ने अपनी अंतिम यात्रा की थी|
- यह 18.3 मीटर ऊँचा लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है| स्तंभ के बगल में ईंट का बना एक स्तूप और एक तालाब है, जिसे रामकुंड के नाम से जाना जाता है|
बराबर गुफाएं (बिहार के प्रमुख पुरास्थल)
- जहानाबाद जिले में ये गुफाएं स्थित है और चट्टानों को काटकर बनायीं गयी सबसे पुराणी गुफाएं हैं| इनमें से अधिकाँश गुफाओं का सम्बन्ध मौर्या काल (322-185 ईसा पूर्व ) से है और कुछ में अशोक के शिलालेखों को देखा जा सकता है|
- ये गुफाएं बराबर (चार गुफाएं ) और नागार्जुनी (तीन गुफाएं) की जुड़वाँ पहाड़ियों में स्थित है| बराबर में ज्यादातर गुफाएं दो कक्षों की बनी हैं जिन्हे पूरी तरह से ग्रेनाइट को तराशकर बनाया गया है जिनमे से एक उच्च – स्तरीय पोलिश युक्त आतंरिक सतह और गूंज का रोमांचक प्रभाव पैदा करता है|
- इन गुफाओं का उपयोग आजीविका सम्प्रदाय के सन्यासियों द्वारा किया गया था जिनकी स्थापना मक्खलि गोसाल द्वारा की गयी थी , वे बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्दार्थ गौतम और जैन धर्म के अंतिम एवं 24वे तीर्थंकर महावीर के समकालीन थे|
- इसके अलावा इस स्थान पर चट्टानों से निर्मित कई बौद्ध और हिन्दू मूर्तियां भी पायी गयी हैं|
Also refer:
- बिहार स्पेशल सामान्य ज्ञान
- Download BPSC 66th prelims question paper: हिंदी में, English.