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चार्वाक दर्शन

चार्वाक दर्शन

हिन्दू धर्म में 9 मुख्य दर्शन बताये गए हैं। उनमें से छः दर्शन आस्तिकवादी हैं और 3 नास्तिकवादी। इन 3 नास्तिकवादी दर्शनों में भी जो चावार्क दर्शन है वो घोर भौतिकवादी है। अर्थात चावार्क दर्शन के अनुसार जीवन का एकमात्र उद्देश्य केवल भोग विलास में लिप्त रहना है।

चार्वाक , जिसे  लोकायत दर्शन के नाम से भी जाना जाता है , प्राचीन भारतीय भौतिकवादी नास्तिक दर्शन है। आम तौर पर नास्तिक का अर्थ लोग ये समझते हैं कि जो ईश्वर का विश्वास ना करे, किन्तु ऐसा नहीं है। मनुस्मृति के अनुसार जो व्यक्ति वेदों पर विश्वास नहीं करता उसे नास्तिक कहा गया है। इसके उलट वेदों पर विश्वास करने वाले व्यक्तियों को आस्तिक कहा गया है। तो चार्वाक विचारधारा के अनुसार वेदों में जो कुछ भी लिखा है वो पूरी तरह से गलत है। यह दर्शन मूल रूप से वेदों जैसे पवित्र ग्रंथों के अधिकार के साथ-साथ मृत्यु के बाद के जीवन, कर्म और मुक्ति (मोक्ष) की अवधारणाओं को खारिज करता है।

चार्वाक दर्शन शब्द में ‘चर्व’ का अर्थ है – खाना । इस ‘चर्व’ पदसे ही ‘खाने-पीने और मौज करने’ का संदेश देने वाले इस दर्शन का नाम ‘चार्वाक दर्शन’ पड़ा है । चार्वाक केवल प्रत्यक्षवादिता का समर्थन करता है, वह अनुमान आदि प्रमाणों को नहीं मानता है। उसके मत से पृथ्वी जल तेज और वायु ये चार ही तत्व है, जिनसे सब कुछ बना है। उसके मत में आकाश तत्व की स्थिति नहीं है, इन्ही चारों तत्वों के मेल से यह देह बनी है, इनके विशेष प्रकार के संयोजन मात्र से देह में चैतन्य उत्पन्न हो जाता है, जिसको लोग आत्मा कहते है। शरीर जब विनष्ट हो जाता है, तो चैतन्य भी खत्म हो जाता है देहात्मवाद। इस प्रकार से जीव इन भूतो से उत्पन्न होकर इन्ही भूतो के नष्ट होते ही समाप्त हो जाता है, आगे पीछे इसका कोई महत्व नहीं है। इसलिये जो चेतन में देह दिखाई देती है वही आत्मा का रूप है, देह से अतिरिक्त आत्मा होने का कोई प्रमाण ही नहीं मिलता है।

चार्वाक के मत से स्त्री पुत्र और अपने कुटुम्बियों से मिलने और उनके द्वारा दिये जाने वाले सुख ही सुख कहलाते है। उनका आलिन्गन करना ही पुरुषार्थ है, संसार में खाना पीना और सुख से रहना चाहिये। भोग का इनके जीवन में क्या महत्त्व है इसे आप चार्वाक दर्शन के इस श्लोक से समझ सकते हैं –

यावज्जीवेत सुखं जीवेद ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत, भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥

अर्थ है कि जब तक जीना चाहिये सुख से जीना चाहिये, अगर अपने पास साधन नहीं है, तो दूसरे से उधार लेकर मौज करना चाहिये, शमशान में शरीर के जलने के बाद शरीर को किसने वापस आते देखा है? इससे आगे का श्लोक और आगे के स्तर पर जाता है जो मदिरा के प्रति इनके प्रेम को दर्शाता है –

पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा, यावत् पतति भूतले।

उत्थाय च पुनः पीत्वा, पुनर्जन्म न विद्यते।

अर्थात: (मदिरा) पियो, पियो और फिर पियो। तब तक पीते रहो जब तक भूमि पर ना गिर जाओ। गिरने के पश्चात यत्न (पुरुषार्थ) कर के पुनः उठो और फिर से मदिरा पियो क्यूंकि मनुष्य का जन्म फिर नहीं मिलता।

इसके अलावा, चार्वाक का दर्शन इस बात पर जोर देता है कि अवलोकन से प्राप्त ज्ञान को संदेह के साथ देखा जाना चाहिए, यह स्वीकार करते हुए कि अनुमानित सत्य सशर्त हैं। यह दृष्टिकोण अस्तित्व की व्यावहारिक समझ को प्रोत्साहित करता है, पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती देता है और ज्ञान के लिए अधिक तर्कसंगत दृष्टिकोण की वकालत करता है।

चार्वाक

चार्वाक दर्शन का नाम चार्वाक नामक  ऋषि  के नाम पर रखा गया है ,  जो इस प्रणाली के संस्थापक थे। जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि चार्वाक  इस स्कूल के वास्तविक संस्थापक बृहस्पति के एक प्रमुख शिष्य थे । यह अलौकिक व्याख्याओं और आध्यात्मिक अटकलों को खारिज करते हुए दुनिया की संवेदी-आधारित समझ की वकालत करता है।

  • इस संप्रदाय की उत्पत्ति उपनिषद के बाद के काल ( 600-400 ईसा पूर्व ) में देखी जा सकती है।
  • संभवतः संशयवाद, भौतिकवाद और शून्यवाद के इसी माहौल में चार्वाक के दर्शन की उत्पत्ति हुई होगी।
  • दर्शन का स्रोत:  जयारसी भट्ट का तत्तवोपलवसिम्हा  ।
  • अन्य कृतियों में उल्लेख:  विद्यारण्य के षटदर्शन समुच्चय  और  सर्वदर्शनसंग्रह।
  • नैषध-चरित्र, प्रबोध-चंद्रोदय, आगम-बांबरा, विदवानमोदा-तरनतिनी  और  कादंबरी जैसी संस्कृत कविताओं और नाटकों   में चार्वाक के विचारों का प्रतिनिधित्व है।
  • लोकायत-सूत्र:  इसे आमतौर पर बृहस्पति का माना जाता है। दूसरी शताब्दी ई. के ग्रंथों, अर्थात् वात्स्यायन के कामसूत्र और गौतम के न्यायसूत्र में लोकायत सूत्र के विचार शामिल हैं।
  • बृहस्पति-सूत्र:  राजनीतिक अर्थशास्त्र पर इसी लेखक द्वारा रचित एक कार्य, अधिक अस्पष्टता लाता है।

चार्वाक दर्शन सिद्धांत

चार्वाक का दर्शन अध्यात्मवाद को खारिज करता है और   अपने तत्वमीमांसा सिद्धांतों का समर्थन करने के लिए  भौतिकवाद की स्थापना करता है । भौतिकवाद  दार्शनिक अद्वैतवाद का एक रूप है जो पदार्थ को प्रकृति में मूल पदार्थ मानता है, और मानसिक अवस्थाओं और चेतना सहित सभी चीजें भौतिक अंतःक्रियाओं का परिणाम हैं।

  • प्रत्यक्षीकरण : प्रत्यक्ष ही प्रमाण है। चार्वाक ज्ञान के प्राथमिक स्रोत के रूप में संवेदी प्रत्यक्षीकरण पर जोर देता है, तथा बाह्य (पांच इंद्रियों) और आंतरिक (मन) प्रत्यक्षीकरण के बीच अंतर करता है।
  • यह अनुमान को त्रुटिपूर्ण बताते हुए इस बात पर प्रकाश डालता है कि अवलोकनों से निकाले गए निष्कर्ष वैकल्पिक स्पष्टीकरणों के कारण भ्रामक हो सकते हैं।
  • तत्वमीमांसा : यह दर्शन पुनर्जन्म, अभौतिक आत्मा और अलौकिक व्याख्याओं जैसी अवधारणाओं को अस्वीकार करता है, तथा यह दावा करता है कि सभी प्राकृतिक घटनाएँ अपने अंतर्निहित स्वभाव से उत्पन्न होती हैं। यह वेदों को मानवीय आविष्कार मानता है, जिनमें दैवीय अधिकार का अभाव है।
  • नैतिकता : चार्वाक सामूहिक हितों की तुलना में व्यक्तिगत इच्छाओं और सुख को प्राथमिकता देता है, तथा जीवन के प्रति सुखवादी दृष्टिकोण की वकालत करता है।
  • यह अलौकिक विश्वासों पर आधारित नैतिक प्रणालियों को चुनौती देता है, तथा तपस्या का विरोध करते हुए व्यक्तिगत खुशी और भोग-विलास पर जोर देता है।
  • सुख : कामुक सुख को स्वाभाविक रूप से गलत नहीं माना जाता है; ज्ञान को दुख को कम करते हुए सुख का आनंद लेने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया जाता है। चार्वाक दुख के डर से सुख के त्याग को मूर्खतापूर्ण मानते हुए अस्वीकार करता है।
  • लोक प्रशासन : चार्वाक विचारकों को लोक प्रशासन में उनके योगदान के लिए जाना जाता है, जैसा कि आईने-अकबरी जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों में उजागर किया गया है।
  • कल्याण और प्रभावी शासन को बढ़ावा देने के लिए उनकी रणनीतियों की प्रशंसा की गई।
  • भारतीय दर्शन पर प्रभाव:  चार्वाक के संवेदी अनुभव और संशयवाद पर जोर ने विभिन्न भारतीय दार्शनिक परंपराओं को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया, जिससे हिंदू, बौद्ध और जैन विचारकों के बीच पुनर्मूल्यांकन को बढ़ावा मिला।

निष्कर्ष

चार्वाक एक नास्तिक विचारधारा है। चार्वाक वेद का प्रामाण्य स्वीकार नहीं करते हैं। उनके अनुसार प्रत्यक्ष ही प्रमाण है, वे अनुमान को नहीं मानते हैं। चार्वाक कहते हैं शरीर ही मोक्ष है। शरीर का नाश होना मोक्ष है। शरीर के अतिरिक्त आत्मा नहीं है। चार्वाक देहात्मवाद को स्वीकार करते हैं। चार्वाक पुनर्जन्मवाद को नहीं स्वीकार करते हैं। क्योंकि उनके मत में मृत्यु के पश्चात कुछ भी नहीं है। चार्वाक भोगवाद को स्वीकार करते हैं।


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