झारखण्ड के पर्व-त्योहार
झारखण्ड के पर्व-त्योहार प्रकृति और संस्कृति से जुड़े होते हैं, जिस कारण झारखंड की अलग ही पहचान है।
करमा पूजा
- यह आदिवासियों का एक महत्वपर्ण त्योहार है जो पूरे झारखंड में बड़े धूम–धाम और हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है।
- भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन करमा पर्व झारखंड में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
- इस पर्व को मुख्य रूप से यह उरांव जनजाति के लोग मानते हैं।
- करमा और धरमा नामक दो भाइयों पर आधारित इस त्योहार में करम डाल की पूजा की जाती है।
- इसमें पूरे 24 घंटे का उपवास के रखा जाता है । इस त्योहार में अखड़ा (नृत्य के मैदान ) में करम पेड़ की एक डाल गाड़ दी जाती है और रात भर नृत्यगान का कार्यक्रम चलता रहता है।
- युवा ग्रामीणों के समूह जंगल में जाते है और लकड़ी, फल और फूलों को इकट्ठा करते हैं। ये सामान भगवान की पूजा के दौरान आवश्यक हैं। इस अवधि के दौरान लोग गाते हैं और समूहों में नृत्य करते हैं। पूरी घाटी ढोल की धुन पर नृत्य करती है।
- यह झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण और जीवंत युवा महोत्सव का दुर्लभ उदाहरणो में से एक है।
सरहुल
सरहुल वसन्त के मौसम के दौरान मनाया जाता है, जब साल के पेड़ की शाखाओं पर नए फूल खिलते है। यह गांव के देवता की पूजा है, जिन्हे इन जनजातियों का रक्षक माना जाता है। लोग खूब-नाचते गाते हैं जब नए फूल खिलते है। देवताओं की पूजा साल की फूलों से की जाती है। गांव के पुजारी या पाहन कुछ दिनों के लिए व्रत रखते है। सुबह में वह स्नान लेते है और कच्चा धागा से बना एक नया धोती पहनते है। उस दिन के पिछली शाम , तीन नए मिट्टी के बर्तन लिये जाते है, और ताजा पानी भरा जाता है और अगली सुबह इन मिट्टी के बर्तन के अंदर, पानी का स्तर देखा जाता है। अगर पानी का स्तर कम होता है, तो इससे अकाल या कम बारिश होने की भविष्यवाणी की जाती है, और यदि पानी का स्तर सामान्य रहता है, तो वह एक अच्छी बारिश का (संकेत) माना जाता है। पूजा शुरू होने से पहले, पाहन की पत्नी, पाहन के पैर धोती है और उनसे आशीर्वाद लेती है।
- यह आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व है ।
- यह पर्व कृषि कार्य शुरू करने से पहले मनाया जाता है।
- सरहुल पर्व चैत्र शुक्ल की तृतीया को मनाया जाता है।
- इसमें पाहन ( पुरोहित ) सरना ( सखुआ का कुंज ) की पूजा करता है।
- सरहुल फूल का विसर्जन स्थल गीडिदा कहलाता है ।
- मुंडा , उरांव और संथाल जनजातियों में यह पर्व क्रमशः सरहुल , खद्यी , एवं बाहा के नाम से जाना जाता है।
- यह पर्व प्रकृति से जुड़ा होता है और इसमें साल वृक्ष की पूजा की जाती है. सरहुल का पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है.
पूजा के दौरान पहान तीन अलग-अलग रंग के युवा मुर्गा प्रदान करते है-पहला सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिए, दूसरा गांव के देवताओं के लिए और तीसरा गांव के पूर्वजों के लिए। इस पूजा के दौरान ग्रामीण, सरना के जगह को घेर लेते है।
जब पहान देवी-देवताओं की पूजा के मन्त्र जप रहे होते है तब ढोल, नगाड़ा, मांदड़ और तुर्ही जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्र भी साथ ही साथ बजाये जाते है। पूजा समाप्त होने पर, गांव के लड़के पहान को अपने कंधे पर बैठाते है और गांव की लड़कियां रास्ते भर आगे-पीछे नाचती गाती उन्हे उनके घर तक ले जाती है, जहां उनकी पत्नी उनके पैर धोकर स्वागत करती है। तब पहान अपनी पत्नी और ग्रामीणों को साल के फूल भेट करते है। इन फूलो को पहान और ग्रामीण के बीच भाईचारे और दोस्ती का प्रतिनिधि माना जाता है। गांव के पुजारी हर ग्रामीण को साल के फूल वितरित करते है। और तो और वे हर घर की छत पर इन फूलों को डालते है, जिसे दूसरे शब्दो में “फूल खोसी” भी कहा जाता है। पूजा समाप्त होने के बाद “हंड़िया” नामक प्रसाद ग्रामीणों के बीच वितरित किया जाता है जो कि, चावल से बनाये पेय पदार्थ होते है। पूरा गांव गायन और नृत्य के साथ सरहुल का त्योहार मनाता है। यह त्योहार छोटानागपुर के इस क्षेत्र में लगभग सप्ताह भर मनाया जाता है। मुंडा, भूमिज और हो जनजाति इस पर्व को उल्लास और आनन्द के साथ मनाते हैं।
भगता परब
- यह त्योहार वसंत और गर्मियों की अवधि के बीच में आता है।
- झारखंड के आदिवासी लोगों के बीच भगता परब, बुढ़ा बाबा की पूजा के रूप में जाना जाता है।
- लोग दिन में उपवास रखते है और पुजारी पहान को उठा कर सर्ना मंदिर कहा जाने वाला आदिवासी मंदिर ले जाते है।
- कभी कभी लाया बुलाये जाने वाले पहान तालाब से बाहर निकलते है और सारे भक्त एक दूसरे के साथ अपनी जांघों को मिलाकर एक श्रृंखला बनाते है और अपने नंगे सीने लाया को चलने के लिए पेश करते है।
- शाम को पूजा के बाद भक्त व्यायाम कार्यों और मास्क के साथ बहुत गतिशील और जोरदार छाऊ नृत्य में भाग लेते हैं।
- अगला दिन बहादुरी के आदिम खेल से भरा है। भक्त अपने शरीर पर छेद करके हुक लगाते है और एक शाल की पेड से लटके पोल की छोर से खुद को बान्ध लेते है। सबसे अधिक ऊंचाई 40 फीट तक जाती है। रस्सी से जुडे हुए पोल के दूसरे छोर के लोग ध्रुव के आसपास खींच लेते है और रस्सी से बंधे भक्त आकाश में अद्भुत नृत्य का प्रदर्शन करते हैं।
- यह त्योहार झारखंड के तामार क्षेत्र में अधिक लोकप्रिय है।
आषाढ़ी पूजा
- यह पूजा आषाढ़ माह में होती है।
- इसमें घर या फिर किसी अखाड़ा में काली बकरी की बली देने की परंपरा है।
- मान्यता है कि ऐसा करने से गांव में चेचक की बीमारी नहीं होती.
- यह सदानो एवं आदिवासियों दोनों में प्रचलित है ।
धानबुनी
- इस पर्व के साथ ही आदिवासी समुदाय के लोग धान बुआई का शुभारंभ करते हैं।
- यह मंडा पर्व के दिन ही मनाई जाती है।
- इस दिन किसान नए कपड़े पहनकर और नई बांस की टोकरी में धान लेकर खेत में बोते हैं।
चांडी पर्व
- यह झारखंड का सबसे प्रचलित पर्व है, जोकि माघ माह की पूर्णिमा को होता है।
- इस पूजा को केवल पुरुष करते हैं। लेकिन जिस घर पर यदि कोई महिला गर्भवती होती है तो उसमें पुरुष भी पूजा नहीं करते।
- इस पर्व में सफेद और लाल मुर्गा और सफेद बकरा की बलि दी जाती है।
- चांडी पर्व उरांव समुदाय के बीच मनाया जाता है।
सोहराय
कार्तिक अमावस्या के दिन यह पर्व झारखंड में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
- यह पशुओं को श्रद्धा अर्पित करने का पर्व है, अर्थात उनके साथ नाचने, गाने और खुशियां मनाने क त्योहर है।
- इसमें कार्तिक अमावस्या के दिन पशुओं को नदी तालाब में नहला कर उनका सृंगार किया जाता है।
- पशुओं के सिंघो में घी और सिंदूर लगाकर उन्हें सुंदर बनाया जाता है।
- दूसरे दिन गाजे- बाजे के साथ पशुओं को मैदानों में दौड़ाया जाता है।
टुसू पर्व
टुसू पर्व एक फसल कटाई का त्योहार है। यह अविवाहित लड़कियों के लिए भी है। लड़कियों एक लकड़ी/बांस रंग के फ्रेम को कागज के साथ लपेट कर, उपहार की तरह सजाते है और पास के पहाड़ी-नदी मे प्रदान कर देते है। वहाँ इस त्योहार पर उपलब्ध कोई दस्तावेज इतिहास नही है, हालांकि यह जीवन और स्वाद से भरा गाने के विशाल संग्रह पेश करती है। ये गीत जनजातीय लोगों की सादगी और मासूमियत को दर्शाते हैं।
- यह पर्व झारखंड के आदिवासियों विशेषकर कुड़मी (महतो) जाती के लोगो का प्रमुख त्योहार है ।
- यह त्योहार सूर्य पूजा से संबंधित है तथा मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है।
- यह टुसू नाम की कन्या के स्मृति में मनाया जाता है ।
- सिंहभूम एवम पंच परगना के क्षेत्र में यह पर्व बड़े धूम धाम से मनाया जाता है।
- पंच परगना के क्षेत्र में इस अवसर पर लगने वाला टुसू मेला काफी प्रसिद्ध है ।
आखाँइन जातरा
- माघ महीने के पहले दिन को “आखाँइन जातरा” के रूप में जाना जाता है, जिस दिन किसान कृषि कार्यों की शुरुआत करते हैं।
- किसान, इस शुभ सुबह उनकी कृषि भूमि की ढाई चक्कर हल चलाते है। इस दिन को झारखंड में नव वर्ष के रूप में भी माना जाता है।
- आखाँइन जातरा से ही टुसू पर्व का आगाज हो जाता है।
बहुरा पर्व
- संतान प्राप्ति और अच्छी वर्षा की कामना के लिए महिलाएं यह पूजा करती हैं।
- बहुरा पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।
जानी-शिकार
- यह हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है।
- महिलाए पुरुषों के कपड़े पहनती हैं और जंगल में शिकार के लिए जाती है।
- जानी-शिकार कुरुख महिलाओं द्वारा भक्तियार खिलजी (अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति) को भगा देने की याद में किया जाता है, जो रोहताश गढ़ में त्योहार के नववर्ष के अवसर पर किले का कब्जा करना चाहता था , जब पुरुष शराबी हालत में हुआ करते थे।
- उन्होने 12 साल में 12 बार कब्जा करने की कोशिश की थी और हर बार वे कुरुख महिलाओं द्वारा भगा दिये जाते थे, जबकि वे युद्ध के क्षेत्र में पुरुषों के कपड़े पहनती थी।
जावा
- अविवाहित आदिवासी लड़कियों जावा त्योहार मनाती है जीसका अपना अलग ही नाच और गाना होता है।
- यह अच्छी प्रजनन क्षमता और बेहतर घर की उम्मीद के लिए मुख्य रूप से आयोजित किया जाता है।
- अविवाहित लड़कियों उपजाउ बीज के साथ एक छोटी टोकरी को सजाती है। माना जाता है की यह अनाज के अच्छे अंकुरण के लिए पूजा प्रजनन क्षमता में वृद्धी लाती है।
- लड़कियों करम देवता को हरी खीरा की पेशकश करते हैं जो ‘बेटा’ के प्रतीक के रूप है, जोकि इंसान के आदिम उम्मीद (अनाज और बच्चों) को दर्शाती है।
मंडा पर्व
- यह पर्व अक्षय तृतीया वैशाख माह में आरम्भ होता है । इसमें महादेव शिव की पूजा होती है ।
- यह त्योहार सदान और आदिवासी दोनों में सामान्य रूप से प्रचलित है ।
- इस त्योहार में घर का एक सदस्य को व्रती होता है , भगता कहलाता है । उसकी मा या बहन उपवास रखती है जिसे सोखताईन कहा जाता है ।
- इसमें भगताओं को रात्रि में धूप धवन की अग्नि शिखाओं के ऊपर लटकाकर झुलाया जाता है जिसे धुवासी कहते हैं। फिर दहकते अंगारों पर उन्हें चलना होता है ,जिसे फूल खुंदी भी कहा जाता है।
- इस पर्व में शिव की आराधना की जाती है।
फगुआ
- फगुआ होली के पर्व को कहते हैं. वैसे तो होली का त्योहार देशभर में मनाया जाता है।
- लेकिन झारखंड में इसे झारखंडी होली कहते हैं, जोकि उरांव ,मुंडा , खरदार ,भूमियार , महली , बेडिया , चीक बड़ाईक , करमाली , चेरो , बैगा जैसे जनजातियों के बीच मनाई जाती है।
Also refer :
- Download the pdf of Important MCQs From the History Of Ancient India
- List Of Important Inscriptions In India
- झारखण्ड सामान्य अध्ययन के लिए यहाँ क्लिक करें ।