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भारत RCEP संधि से क्यों नहीं जुड़ा| Important Points

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क्या है RCEP

  • RCEP – Regional Comprehensive Economic Partnership (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी) आसियान के दस सदस्य देशों ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमा, फिलिपिंस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और पांच एफटीए पार्टनर्स चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच मुक्त व्यापार समझौता है।
  • वस्तुतः RCEP वार्ता की औपचारिक शुरुआत वर्ष 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन में हुई थी। इसके बाद भारत 2019 मे इस समझोते से अलग हो गया था। अंततः इस समझोते पर 15 नवम्बर 2020 को हस्ताक्षर हुआ है। इसकी मेजबानी की है वियतनाम ने, जिसके प्रधानमंत्री गुयेन जुआन फुक ने कहा कि यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता है।
  • आरसीईपी देशों के बीच हुआ समझौता एक मुक्त व्यापार समझौता है जिसका उद्देश्य आपस में टैरिफ़ और दूसरी बाधाओं को काफ़ी कम करना है। ये देश दुनिया की आबादी का 30 प्रतिशत हिस्सा हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इनका योगदान 30 प्रतिशत है। इनमें चीन और जापान जैसी दूसरी और तीसरी सब से बड़ी अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं। ये यूरोपीय संघ से भी बड़ा ट्रेडिंग ब्लॉक है।
  • पहले, ट्रांस-पैसिफ़िक पार्टनरशिप (टीपीपी) नाम की एक व्यापारिक संधि में अमेरिका भी शामिल था, लेकिन 2017 में, राष्ट्रपति बनने के कुछ समय बाद ही, डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को इस संधि से बाहर ले गये थे। RCEP को ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप (Trans Pacific Partnership- TPP) के एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
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भारत के इस समझोते से नहीं जुड़ने के कारण

  • नवंबर, 2019 में भारत ने इस डील से खुद को अलग कर लिया था और इसकी वजह भारत ने बढ़ते व्यापार घाटे को बताया था। भारत ने कहा था कि इस डील में शामिल होने का मतलब है कि भारत के बाजारों में चीन के सामानों की भरमार, जिससे भारत की आंतरिक अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। इस बार भारत ने इस डील में हिस्सा नहीं लिया है, लेकिन अधिकारियों ने कहा कि इस समझौते में भारत के फिर से शामिल हो सकने के लिए द्वार खुले रखे गए हैं।
  • इस डील में भागीदार बनने पर भारत में आयात की जाने वाली 80 से 90 फीसदी चीजों पर इंपोर्ट ड्यूटी कम हो जाती। भारतीय इंडस्ट्री में ये भी डर है कि इंपोर्ट ड्यूटी कम होने से भारत के बाजार में विदेशी सामान की भरमार हो जाएगी, खासकर चीन से।
  • साथ ही कमजोर पड़ सकता था आत्मनिर्भर भारत अभियान.

आगे के रास्ते

  • इस डील का भागीदार होने के फायदे भी हैं और नुकसान भी। भारत का आसियान देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट हैं लेकिन चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के साथ नहीं हैं। भारत ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसा अपना बाजार खो सकता है इसलिए भारत या तो RCEP मे अपने शर्तो के साथ फिर से बातचीत शुरु करे या फिर TPP मे जुड़ जाये। भारत के पास दूसरा आप्शन ये है की इन बचे हुए देशो के साथ FTA कर ले। साथ ही भारत को आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी सफल बनाने के लिए पूरी कोशिश करनी होगी।

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